मनोविश्लेषणवाद क्या है | Manovishleshan Siddhant

मनोविश्लेषणवाद (Psychoanalysis) एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत और उपचार पद्धति है, जिसे सिगमंड फ्रायड द्वारा विकसित किया गया था। यह सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि हमारे अवचेतन (unconscious) विचार, इच्छाएँ और अनुभव हमारे मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। फ्रायड ने यह विचार प्रस्तुत किया कि हमारी मानसिक समस्याएँ और विकारों की जड़ें हमारे अवचेतन में दबे हुए संघर्षों और अनसुलझे मुद्दों में होती हैं।

    मनोविश्लेषणवाद के जनक

    एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन के रूप में इसे स्थापित करने का श्रेय ऑस्ट्रिया के प्रख्यात न्यूरोलॉजिस्ट सिगमंड फ्रायड (1856-1939) को जाता है। फ्रायड को ही मनोविश्‍लेषणवाद का जनक भी कहा जाता है। उनके इस सिद्धान्त को यौनवाद सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक An Outline of Psycho-Analysis में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके इस सिद्धान्त को उनके शिष्य एडलर एवं युंग ने आगे बढ़ाया।

    फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत pdf

    मनोविश्लेषणवाद क्या है

    मनोविज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा के रूप में मनोविश्लेषण का उल्लेख किया जाता है। मनोविश्लेषण के अंतर्गत अवचेतन मन के अध्ययन से संबंधित सिद्धान्त और चिकित्सकीय तकनीकी शामिल है जिनके द्वारा मनुष्य के मन संबंधी रोगों का उपचार किया जाता है। 

    सिगमंड फ्रायड का मानना था कि सम्मोहन क्रिया (Hypnotized) द्वारा मानसिक चिकित्सा एवं स्वच्छंद विचार-साहचर्य से मानव मस्तिष्क की पुरानी यादें, रहस्यों एवं अनुभवों को साकार किया जा सकता है।

    मनोविश्लेषणशस्त्र विज्ञान है या नहीं, यह अब भी विवाद का विषय है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसने मानव अध्ययन को अत्यधिक प्रभावित किया है। यहाँ तक कि साहित्य के लेखन और उसके अध्ययन को भी इसने प्रभावित किया है।

    फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत

    मनोविज्ञान के क्षेत्र में सिगमण्ड फ्रायड के नाम से सभी लोग परिचित हैं। फ्रायड ने व्यक्तित्व के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, उसे व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त कहा जाता है। मानव व्यवहार का अध्ययन मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है, परन्तु साहित्यकार मानव व्यवहार का विश्लेषण करता है। पश्चिमी देशों के साहित्यकारों ने फ्रायड, एडलर एवं युंग के सिद्धान्तों का उपयोग अपने पात्रों के चरित्रांकन में किया। हिन्दी में कुछ उपन्यासकार ऐसे हैं जो इन मनोवैज्ञानिकों से परिचित है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार आदि।

    फ्रायड महोदय ने अवचेतन मन एवं काम भावना को अपने मनोविश्लेषण में प्रमुख स्थान दिया। फ्रायड की मान्यता है कि काम भावना, मानव मन की मूलु परिचालिका शक्ति है। फ्रायड के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम, साहित्य और संस्कृति की मूल प्रेरणा कामवृत्ति है। सर्जक (साहित्यकार एवं कलाकार) कल्पनाशील होने के कारण अपनी वर्जनाओं को काम प्रतीकों के रूप में अभिव्यक्त करता है। मनुष्य जब सामाजिक मूल्यों या नैतिकता के बन्धनों के कारण अपनी काम प्रवृत्ति एवं वासना का दमन करता है तो वह उसके अवचेतन मन में कण्ठा का रूप धारण कर लेती है। साहित्य एवं कला इन वासनाओं एवं मनोमुन्थियों के रेचन का मार्ग प्रशस्त करती है।

    फ्रायड के अनुसार, मानव मन के तीन भाग होते हैं

    1. चेतन
    2. अनुभव
    3. अवचेतन

    चेतन मन में इच्छाएँ, प्रेरणाएँ, संवेदनाएँ आती हैं, जिसमें व्यक्ति चेतन अवस्था में होता है, इनका सम्बन्ध वर्तमान समय से होता है। मनुष्य चेतन मन से सब कुछ देखता व अनुभव करता है, सोचने-समझने का सारा कार्य चेतन मन से होता है, जबकि अर्द्धचेतन मन में दबी इच्छाओं एवं सुप्त वासनाओं का गृह स्थान है। यही दबी हुई इच्छाएँ, अवसर, अनुसार, साहित्य एवं कला में अभिव्यक्त होती है। चेतन एवं अवचेतन दोनों में द्वन्द्व रहता है।

    अवचेतन मन में दबी इच्छाएँ जब चेतन मन के धरातल पर पहुँचती है तो चेतन मन उसका निषेध करता है परिणामस्वरूप द्वन्द्व होता है। दोनों मन के बीच अर्द्धचेतन मन होता है। मनोविश्लेषक एडलर के अनुसार, मानव मन में उत्पन्न 'हीन भावना' के कारण मनुष्य के मन में अहं भाव उत्पन्न होता है और इससे परिचालित होकर वह अपने महत्त्व को अनुभव करने एवं कराने की आवश्यकता अनुभव करते हुए उसी के अनुसार आचरण एवं व्यवहार करता है।

    मनोविश्लेषक युंग के अनुसार, मनुष्य की स्मृतियाँ मानसिक कार्य को चेतन मन में एकत्र नहीं रख पातीं और वे अवचेतन मन में चली जाती है। इसी अवचेतन मन में दबी रहने वाली अनुभूतियाँ, स्मृतियाँ एवं विचार अहं को स्वीकार नहीं हो पाते परिणामस्वरूप भय, आशंका, मृत्यु जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। इससे मनुष्य का जीवन प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता।

    फ्रायड का चेतन और अचेतन संबंधित उदाहरण

    वैसे तो हम संसार का बोध चेतन मस्तिष्क द्वारा करते हैं किन्तु फ्रायड अचेतन मन को अधिक व्यापक और प्रमुख मानते हैं क्योंकि चेतन मन हमें संसार के नैतिकता और संबंधों से अवगत करवाता है किन्तु चेतन मन द्वारा दमित सारे इच्छाओं का संग्रहण अचेतन मन में होता है और यहीं हमारे सारे कार्यों के प्रेरणा के मूल में है।

    👉 फ्रायड ने पहला उदाहरण हिमशिला का लिया है, जिसका तीन भाग जल मग्न है और एक भाग ऊपर है। उन्होंने कहा कि जो तीन भाग जलमग्न है वह अचेतन मन है और जो ऊपर है वह चेतन मन है। मन का बड़ा हिस्सा अचेतन मन का ही है।

    👉 दूसरे उदाहरण में वह कहते हैं कि किसी गोदाऊन के बाहर रखा सुव्यवस्थित चीज़ें चेतन मन की सुव्यवस्थित चीजों के समान है और उस गोदाऊन के भीतर पड़ी चीज़ें अचेतन मन के भीतर पड़ी इच्छा के समान है।

    👉 तीसरे उदाहरण में वह कहते हैं कि समुद्र का सारा जल अचेतन मन की इच्छा है और समुद्र में उठने वाली लहरें चेतन मन के समान है।

    फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद का मूल्यांकन

    मूल्यांकन में किसी भी वस्तु, परिस्थिति, व्यक्ति अथवा सिद्धान्त के गुण एवं दोष की समीक्षा की जाती है। फ्रायड के सिद्धान्त में भी यह उपस्थित है।

    फ्रायड के सिद्धान्त में उपस्थित गुण

    • फ्रायड का सिद्धान्त विस्तृत एवं चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने व्यापक ढंग से व्यक्तित्व का अध्ययन किया है। वह व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को समझाने की कोशिश करते हैं।
    • फ्रायड ने व्यक्तित्व के विकास को बहुत ही सरलता से समझाने की कोशिश की है।

    फ्रायड के सिद्धान्त में उपस्थित दोष

    • फ्रायड ने लैंगिक ऊर्जा पर आवश्यकता से अधिक बल दिया है। फ्रायड के सिद्धान्त की कड़ी ऑलोचना इस आधार पर की जाती है कि उन्होंने अपने पूरे सिद्धान्त में लैंगिक ऊर्जा को ही आधारभूत इकाई माना है।
    • आलोचकों का मानना है, कि फ्रायड ने अपने शोध कार्यों को सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत नहीं किया है, जो किसी भी सिद्धान्त की वैज्ञानिकता के लिए अति आवश्यक है।
    • फ्रायड कां सिद्धान्त उनके व्यक्तिगत अनुभवों और उन मनोरोगियों के अनुभवों पर आधारित है, जो उनके यहाँ उपचार के लिए आते थे। आलोचकों का मानना था, इसे सामान्य व्यक्तियों पर लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी नींव मनोरोगियों की अनुभूतियों पर टिकी है।

    हिन्दी साहित्य में मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों ने अपने व्यक्ति चरित्रों का निर्माण इसी आलोक में किया है। अज्ञेय के उपन्यास 'शेखर एक जीवनी' का शेखर, जैनेन्द्र के 'त्याग-पत्र' की मृणाल तथा 'सुनीता' की सुनीता एवं इलाचन्द्र जोशी के पात्र चन्द्रमोहन, नकुलेश, महीप आदि इन्हीं हीन ग्रन्थियों से परिचालित हैं। वस्तुतः भीतरी विचार ही बाहरी दुनिया में प्रकट होते हैं। फ्रायडवादी मनोविज्ञान को स्वीकार करते हुए कुण्ठाओं, वासनाओ, गुह्य भावनाओं को काव्य में व्यक्त करना, वास्तविकता एवं यथार्थ के स्वीकृत आयामों को अस्वीकार करते हैं। मनोविश्लेषणवादी उपन्यासकार अपने पात्रों के अन्तर्मन में दबी हुई कुण्ठाओं, हीनताओं को सामने लाकर व्यवहार का विश्लेषण करने की अ‌द्भुत क्षमता रखते हैं।

    फ्रायड, एडलर और जंग  का मनोविज्ञान 

    मनोविश्लेषण शास्त्र के प्रर्वतक के रूप में फ्रायड प्रसिद्ध हुए । एडलर और जुंग शुरूवात में फ्रायड के शिष्य, अनुगामी और सहयोगी थे, किंतु आगे चलकर उनकी मान्यताएं फ्रायड से अलग हो गईं । फलतः उन्होंने अपनी मान्यताओं को स्वतंत्र सिद्धांतों का रूप दिया। इस भेद के कारण तीन नामों का प्रयोग किया गया –

    (1) फ्रायड- मनोविश्लेषण (साइको-एनलसिस),

    (2) एडलर- व्यष्टि मनोविज्ञान (इंडिविजुअल साइकॉलॉजी) तथा

    (3) जुंग - विश्लेषण मनोविज्ञान (एनलिटिकल साइकॉलॉजी)।

    फ्रायड ने व्‍यक्तित्‍व रचना का सिद्धांत

    व्यक्तित्व रचना - फ्रायड ने व्यक्तित्व रचना को तीन भागों में बाँटा है-

    1. Id (इड, इदम्) - इसे उपाहं के नाम से भी जाना जाता है। यह मनुष्य का सहजात निकाय है। इसका संबंध अचेतन मन से होता है तथा यह आदिम प्रवृत्तियों का भंडार होता है। मनुष्य में सेक्स भावना बचपन से ही होती है, जो इदम् में विद्यमान होती है। फ्रायड ने इसे सुख-सिद्धान्त कहा है क्योंकि इसमें उचित-अनुचित, विवेक-विवेक का ध्यान नहीं रहता। मनुष्य के मन में जो इच्छा उत्पन्न होती ही, वह इदम् के प्रभाव से तुरंत उसकी तुष्टि कर लेता है। चाहे वह इच्छा उचित हो या अनुचित।

    2. Ego (इगो, अहम्) - यह सामाजिक एवं नैतिक दबावों के कारण इड को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। इसका संबंध वास्तविकता से है। इसलिए फ्रायड ने इसे वास्तविक सिद्धांत कहा है।

    3. Super Ego (सुपर इगो, पराअहम्, अत्यहम्) - फ्रायड ने इसे पूर्णतावादी/आदर्शवादी सिद्धांत कहा है। इसमें मनुष्य उचित-अनुचित का ध्यान रखते हुये विवेक से फैसला कर्ता है। इसे नैतिक अहम् के नाम से भी जाना जाता है।

    आनंद का सिद्धान्त -फ्रायड ने अपने आनंद सिद्धान्त के आधार पर मानस की दो वृत्तियों का वर्णन किया है-जीवनवृत्ति (Eros) एवं मरणवृत्ति (Thanatos)। इरोस (जीवनवृत्ति) को उन्होंने यौनवृत्ति भी कहा है। मनुष्य जीवनवृत्ति से प्रभावित होकर निर्माण कार्य एवं मरण वृत्ति से प्रभावित होकर विनाश कार्यों की ओर प्रवृत्त होता है। फ्रायड ने जीवनवृत्ति एवं मरणवृत्ति को मूल प्रवृत्तियों के रूप में स्वीकार किया है।

    लिबिडो -फ्रायड के सिद्धान्त की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कामवृत्ति (लिबिडो) है। मनुष्य के सभी कार्य व्यापारों की मूल प्रेरणा लिबिडो ही है। लिबिडो काममूला एवं स्वार्थमूला होती है। फ्रायड लिबिडो को ही साहित्य सृजन का मूल प्रेरणास्रोत मानते हैं।

    मनोविश्लेषणवाद क्या है

    हिन्दी मनोविश्लेषणवादी उपन्यासकार

    1. जैनेन्द्र कुमार (Jainendra Kumar)

    जैनेंद्र कुमार का नाम हिंदी साहित्य के प्रख्यात उपन्यासकारों और कहानीकारों में से एक है। उनके कार्य मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उनकी रचनाएँ पात्रों की मानसिक स्थिति और उनके संघर्षों को गहरी समझ के साथ चित्रित करती हैं।

    इनकी मुख्य रचनाएँ:

    • बिना दीवारों का घर
    • गुल्रेस
    • एजिया (कविता और कहानी)।

    2. इला चंद्र जोशी (Ila Chandra Joshi)

    इला चन्द्र जोशी हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण लेखिका थीं। उनके उपन्यास सामाजिक और मानसिक पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालते हैं। उनका काम न केवल मनोवैज्ञानिक मुद्दों पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति को भी दर्शाता है।

    इनकी मुख्य रचनाएँ:

    • नया संसार
    • मौन करुणा
    • अंधकार के बादल

    3. अज्ञेय (Agyey)

    अज्ञेय, जिनका वास्तविक नाम सुमित्रानंदन पंत था, हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, कहानीकार और लेखक थे। उनकी रचनाएँ गहरे मनोवैज्ञानिक और अस्तित्व संबंधी प्रश्न उठाती हैं। उन्हें भारतीय साहित्य में आधुनिकतावाद के प्रवर्तकों में से एक माना जाता है।

    मुख्य रचनाएँ:

    • शेखर: एक जीवित व्यक्ति (उपन्यास मनोवैज्ञानिक और अस्तित्वगत दृष्टिकोण से लिखा गया है),
    • नदी द्वीप
    • कविता के संवाद.

    इन तीनों लेखकों ने हिंदी साहित्य में मनोविश्लेषणवाद/मनोवैज्ञानिक उपन्यासों के महत्व को बढ़ाया और समाज, व्यक्ति और मानसिकता के जटिल संबंधों पर जोर दिया। उनकी रचनाएँ चरित्र संघर्ष, मानसिक संघर्ष और अस्तित्व संबंधी मुद्दों का व्यावहारिक चित्रण प्रस्तुत करती हैं।

    मनोविश्लेषणवाद की विशेषताएं

    फ्रायड के मनोविश्लेषण की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

    1. फ्रायड के अनुसार मनुष्य का विकास विरासत में मिली विशेषताओं द्वारा नहीं बल्कि बचपन की भूली-बिसरी घटनाओं से ज्यादा निर्धारित होता है।
    2. मनुष्य का व्यवहार, अनुभूति और विचार अवचेतन में मौजूद मूलवृत्तियों के 2 संचालन द्वारा निर्धारित होते हैं।
    3. जब इन संचालनों को अभिज्ञान (अवेयरनेस) में लाया जाता है तो वे रक्षात्मक प्रक्रियाओं खासतौर पर दमनात्मक प्रक्रियाओं के रूप में प्रतिरोध करती हैं।
    4. चेतन और अवचेतन के बीच द्वंद्व का परिणाम कई तरह की मानसिक गड़बड़ियों में निकलता है, जैसे विक्षिप्तता (न्यूरोसिस), न्यूरोटिक लक्षण, उद्विग्नता, डिप्रेशन आदि।
    5. सपनों में और आदतों, जबान की फिसलन जैसे अनजाने में किये गये कार्यों में अवचेतन के तत्व देखे जा सकते हैं।
    6. चिकित्सीय हस्तक्षेप के द्वारा इन तत्वों को चेतन मानस में लाकर अवचेतन के प्रभाव से मुक्ति पायी जा सकती है।