डॉ. राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद में, अकबरपुर नामक स्थान पर हुआ था। 1934 में 'कांग्रेस सोशलिस्ट' साप्ताहिक पत्र का सम्पादन किया, 1955 में भारतीय समाजवादी दल का निर्माण किया और 1963 में लोकसभा सदस्य बने।
लोहिया जी हिंदी को राजभाषा बनाने के समर्थक थे। वह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक व समाजवादी नेता थे।
लोहिया दर्शन
लोहिया दर्शन से तात्पर्य भारतीय समाज के विचारक और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के दर्शन से है। लोहिया का समाजवादी दृष्टिकोण परंपरागत समाजवाद से भिन्न था और उन्होंने भारतीय समाज के संदर्भ में इसे लागू करने की कोशिश की। उनका दर्शन भारतीय समाज की सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दूर करने, न्याय, समानता और स्वतंत्रता को स्थापित करने पर आधारित था।
लोहिया दर्शन के मुख्य सिद्धांत निम्न हैं:-
- समाजवाद और समानता
- जातिवाद का विरोध
- महिलाओं का उत्थान
- विकेंद्रीकरण (Decentralization)
- धार्मिक उन्मूलन
- आत्मनिर्भरता
- संस्कृति और समाज
डॉ. राम मनोहर लोहिया का समाजवादी दृष्टिकोण
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने देश के समाजवादी आन्दोलन का प्रतिनिधित्व किया था। लोहिया जो मार्क्सवाद व गांधीवाद को अपना आदर्श मानते थे। उन्हों से प्रेरणा लेकर उन्होने समाजवाद का निर्माण किया।
उन्होंने पाश्चात्य समाजवाद के स्थान पर एशियाई समाजवादी विचारधारा पर विशेष जोर दिया, क्योंकि एशिया और पश्चिमी देशों की परिस्थितियाँ एक-दूसरे से भिन्न थीं। लोहिया समाजवाद को नए ढंग से देखते थे, वह पुराने समाजवाद को समय के अनुसार अप्रचलित समझते थे और उसके स्थान पर नवीन समाजवाद को स्थापित करना चाहते थे।
नवीन समाजवाद को स्थापित करना सरल नहीं था, उसके लिए वह कुछ सुधारों को अनिवार्य समझते थे, जिनमें विश्व संसद की स्थापना, पुरे विश्व के जीवन स्तर का सुधार तथा उद्योगों व बैंको का राष्ट्रीयकरण आदि शामिल हैं।
भारत में विदेशी सत्ता से भारतीयों के लिए नई समस्याएँ उत्पन्न हो गई थीं, इन्हीं समस्याओं को दूर करने व बन्धनों से मुक्त होने के लिए समाजवाद स्थापित हुआ। लोहिया जी मनुष्य जीवन के सम्पूर्ण भाग का विकास चाहते थे न कि केवल एक भाग का। देश में पूँजीपति मजदूरों, किसानों का शोषण कर रहे थे, जिसको देखते हुए समाजवाद की मांग होने लगी।
पश्चिमी देशों में वर्चस्ववाद और सामन्तवाद 18वीं शताब्दी में ही दम तोड़ चुका था, परन्तु भारत में यह 20वीं शताब्दी में भी विद्यमान था। भारत में इस विचारधारा को समाप्त करने के लिए समाजवादियों ने ही कदम उठाए व इस विचारधारा पर कड़ां प्रहार किया।
भारतीय समाजवाद की पृष्ठभूमि
समाजवादियों ने सामन्तवाद व वर्चस्ववाद का पुरजोर विरोध किया। समाजवादी विचारक गांधीवादी विचारधारा को साथ लेकर भारत में समाजवाद की शुरुआत करते हैं। गांधीजी का 'हिन्द स्वराज्य' आधुनिक परिवेश में भारतीय समाजवाद की सर्वप्रमुख रचना है। उनके बाद के चिन्तकों ने गांधीवाद और पश्चिमी समाजवाद में तालमेल रखने का प्रयास किया। लोहिया, नेहरू, जयप्रकाश नारायण सभी पर मार्क्सवाद का प्रभाव दिखा।
महात्मा गांधी ने भी साम्यवाद के विभिन्न सिद्धान्तों का स्वागत किया था। वह वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे, परन्तु वह इसे अहिंसा से प्राप्त करना चाहते थे, वह काल मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त के पक्ष में नहीं थे। वे इसके बिना ही सामाजिक क्रान्ति करना चाहते थे।
डॉ. राम मनोहर लोहिया का चिन्तन क्षेत्र बहुत व्यापक था। उनका चिन्तन क्षेत्र केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं था। साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भाषा आदि को लेकर भी उनके मौलिक विचार थे। उनकी दृष्टि और विचारधारा का क्षेत्र सीमित नहीं था, बल्कि वह पूरे विश्व को अपनी विचारधारा के अन्र्तगत लेते थे।
भारत में समाजवाद स्थापित करने का प्रयोजन
लोहिया एक आदर्श समाज का निर्माण करना चाहते थे, किन्तु उनकी आदर्श योजना कुछ लोगों की दृष्टि में व्यावहारिक नहीं थी, जैसे-भूमि का पुनर्वितरण, अन्तर्राष्ट्रीय जमींदारी उन्मूलन, विश्व सरकार 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का पुनर्गठन आदि।
डॉ. राम मनोहर लोहिया जी का देश के समाजवादी चिन्तन में विक्रीप योगदान था। उन्होंने अपने विचारों द्वारा रुके हुए समाज को गति देने के अवक् प्रयास किए। उन्होंने देश के समक्ष अपने क्रान्तिकारी विचार रखे। पहले उनके विचारों पर संन्देह हुआ पर बाद में उनकी विशेषता सिद्ध हो गई। लोहिया ने तात्कालिक मानव विरोधी व्यवस्था के सभी पहलुओं पर कड़ा प्रहार किया।
डॉ. राम मनोहर लोहिया बहुमुखी क्रान्तिकारों दर्शन के जनक थे। वह अन्याय का तीव्रतम प्रतिकार करते थे। वह संसद के अन्दर व बाहर दोनों स्थानों पर अपनी क्रान्तिकारी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करते थे। उनमें न केवल देश की जटिल समस्याओं को समझने की क्षमता थी, बल्कि उनके पास देश को सही नेतृत्व देने का भी कौशल था। राष्ट्रीय जीवन के उत्थान के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया ने साम्प्रदायिकता, जाति-प्रथा, नर-नारी असमानता, अस्पृश्यता, रंग भेद नीति तथा अन्य इसी प्रकार की सामाजिक कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया।
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सामाजिक कुरीतियों का गहनता से अध्ययन किया था। उन्होंने सैंकडों वर्षों की दासता का कारण इन सामाजिक बुराइयों को ही बताया। उनका मानना था कि सामाजिक समानता, आर्थिक समानता से अधिक महत्त्वपूर्ण है। डॉ. राम मनोहर लोहिया लोकतन्त्र के बिना समाजबाद को अधूरा मानते थे। उनके राजनीतिक चिन्तन में चौखम्भा योजना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने चौखम्भा योजना व्यक्ति की राजनैतिक स्वतन्त्रता के लिए प्रस्तुत की। इस योजना में उन्होंने राजनीतिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने चौखम्भा योजना के अन्तर्गत ग्राम, मण्डल, केन्द्र व प्रान्त इन शक्तियों के विकेन्द्रीकरण का सुझाव दिया। देश के उत्थान के लिए उन्होंने और भी कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने देश की मातृ भाषा को प्रतिष्ठित करने के लिए भी अहम योगदान दिया। उन्होंने गरीबों एवं शोषितों को अपने अधिकारों की माँग के लिए स्वर दिया। उन्होंने पेट की समस्याओं को ही नहीं, अपितु मन की समस्याओं को भी सुलझाने का प्रयास किया। डॉ. राम मनोहर लोहिया को भारतीय सभ्यता संस्कृति से अथाह प्रेम था, उनके संस्कारों में इसकी झलक विद्यमान थी। डॉ. राम मनोहर लोहिया में भारत की आध्यात्मिकता और पश्चिम की कार्य क्षमता का मिश्रण है। उनका मत था कि समाज को वहीं व्यक्ति दिशा दे सकता है, जिसको भूत का बोध हो, वर्तमान का ज्ञान हो और भविष्य का सपना हो।
उनका नारा था "मानगै नहीं पर मरेगें नहीं"। वह अन्याय के विरुद्ध लड़ाई के प्रेरणा स्रोत हैं। वेह पूरे विश्व में सकारात्मक बदलाव के पक्षधर थे। उनका दर्शन विश्व शान्ति का दर्शन माना जाता है। निःशस्त्रीकरण, विश्व विकास समिति, अन्तर्राष्ट्रीयवाद, संयुक्त राष्ट्र संघ का पुनर्गठन और विश्व सरकार की उनकी योजनाएं उन्हें विश्व नागरिक और उनके दर्शन की विश्व-दर्शन सिद्ध करती है।
चौखम्भा योजना
इस योजना में उन्होंने राजनीतिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया चौखंबा योजना के अंतर्गत ग्राम मंडल प्रांत व केंद्र इन शक्तियों का विकेंद्रीकरण का सुझाव दिया लोकतंत्र में शक्ति का स्रोत नीचे से ऊपर होना चाहिए ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
अपनी कृति 'अस्पेक्टस आफ सोशलिस्ट पॉलिसी' में चौखंबा शासन का विचार किया। जिसमें निम्न स्तर पर ग्राम व मंडल उसके ऊपर राज्य या प्रांत तथा सबसे ऊपर केंद्र सरकार की इकाई होगी यह एक संघात्मक व्यवस्था होगी।
चौखंबा शासन में राज्य की सशस्त्र सेना केंद्र के अधीन सशस्त्र पुलिस प्रांत व अन्य पुलिस मंडल ग्राम के अधीन होगी। शासन का उद्देश्य व्यक्ति को राजनीतिक सांस्कृतिक व आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना है। उन्होंने भारतीय संघात्मक शासन का विरोध किया जो विकेंद्रीकरण पर आधारित है उनके अनुसार भारत में जिलाधिकारी और जनपद प्रशासन भी केंद्रीकरण पर आधारित है जो लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए नकारात्मक है।
समाजवादी अर्थव्यवस्था
समाज से आर्थिक विषमता को दूर करने हेतु लोहिया ने निम्न सुझाव दिए -
- उत्पादन मूल्य से विक्रय मूल्य डेढ़-गुने से अधिक नहीं होना चाहिए।
- औसत आय में निरंतर वृद्धि होती रहनी चाहिए।
- कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए जाएं, सिंचाई सुविधा में वृद्धि हो। भू-अन्न सेना का निर्माण हो, जो बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाए।
- उत्पादन के साथ-साथ वितरण की व्यवस्था को संतुलित बनाया।
- 'अन्न बांटो आंदोलन' पर बल दिया तथा राज्य की ओर से मुफ्त रसोई घर स्थापित करने की सलाह दी। अनाज के व्यापार का समाजीकरण करने का सुझाव दिया।
सप्त क्रांति पर एक दृष्टि
डॉ. लोहिया ने सात क्रांतियों की अवधारणा इस रूप में प्रस्तुत की है :-
- नर नारी की समानता के लिये।
- रंग भेद के कारण राजकीय, आर्थिक तथा वैचारिक असमानता के विरुद्ध।
- संस्कारगत, जन्म, जाति-प्रथा के विरुद्ध तथा पिछड़े वर्गों को विशेष अवसर प्रदान करने के लिये।
- परदे की गुलामी के खिलाफ स्वतंत्रता तथा विश्व लोक राज्य के लिये।
- व्यक्तिगत पूँजी संबंधी विषमताओं के विरुद्ध तथा आर्थिक समानता के लिये।
- निजी जीवन में अनधिकार आवश्यक हस्तक्षेप के विरुद्ध तथा लोकतंत्रीय पद्धति के लिये।
- अस्त्र-शस्त्रों के विरुद्ध तथा सत्याग्रह के लिये।
राम मनोहर लोहिया की किताबें
डॉ. राम मनोहर लोहिया प्रमुख रचनाएँ है -
- भारत माता धरती माता (Bharatmata : Dhartimata)
- समता और सम्पन्नता (Samta Aur Sampannta)
- भारत विभाजन के गुनाहगार (Bharat Vibhajan Ke Gunaghar)
- हिन्दू बनाम हिन्दू (Hindu Banam Hindu)
- अर्थशास्त्र : मार्क्स से आगे (Arthshastra : Marks Se Aage)
- गिल्टी मेन ऑफ इंडियाज पार्टीशन (Guilty Men of India’s Partition)
- भारत के शासक (Bharat Ke Shashak)
- इतिहास चक्र (Itihas Chakkra)
- लोहिया के विचार(Lohiya Ke Vichar)
उपसंहार
भारत के राजनीतिक लक्ष्यों, लोकतन्त्र, समाजवाद, अहिंसा, समता, विकेन्द्रीकरण को साकार करने का श्रेय भी डाँ. राम मनोहर लोहिया को है। वे मानवतावादी दृष्टिकोण को महत्व देते थे, वे नर नारी में भेद, रंग भेद, जाति भेद व अर्थ भेद को मिटाना चाहते थे, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है। मानव विकास में उनकी विचारधारा व्यावहारिक रही है।