भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का परिचय - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850 - 1885) कोआधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहा जाता हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। ब्रिटिश राज की शोषक प्रकृति का चित्रण करने वाले उनके लेखन के लिए उन्हें युग चारण माना जाता है।
भारतेन्दु और हिन्दी नवजागरण
आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के आगमन को हिन्दी में नवजागरण काल के रूप में देखा गया। भारतीय नवजागरण से बंगाल का सर्वप्रथम परिचय हुआ। राजा राममोहन राय ने भारत में आधुनिकता की नींव रखी। हिन्दी में यह कार्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया। भारतेन्दु को ‘आधुनिक हिन्दी का अग्रदूत’ कहते है।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 में हुआ और इस विद्रोह के पश्चात् ही हिन्दी नवजागरण प्रारम्भ हुआ। स्वतन्त्रता संग्राम का पहला विद्रोह नाकाम रहा, लेकिन वह भारत में आधुनिकता की सोच का गवाह भी रहा। भारत को 1857 के विद्रोह की काफी कीमत चुकानी पड़ी। लाखों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की मण्डली में कई प्रसिद्ध लेखक थे, जिनमें बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन', पण्डित प्रतापनारायण मिश्र, पण्डित बालकृष्ण भट्ट आदि थे। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इनके साथ हिन्दी की नवधारा को आगे बढ़ाया। इन सभी ने नवधारा में देशज और तद्भव शब्दों का प्रयोग किया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शुरू की हुई धारा भविष्य में चलकर हिन्दी पत्रकारिता की धार बनी। इसका आभास उन्हें स्वयं भी नहीं था।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से पूर्व हिन्दी की स्थिति
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जन्म से पूर्व हिन्दी की दो धाराएँ थीं, एक का नेतृत्व राजा लक्ष्मण सिंह कर रहे थे और दूसरी का नेतृत्व राजा शिवप्रसाद 'सितारे-हिन्द' के हाथों में था।
राजा लक्ष्मण सिंह संस्कृत के शब्दों को बढ़ावा देने के पक्ष में थे और राजा शिवप्रसाद 'सितारे-हिन्द' हिन्दी में जबरन फारसी के शब्दों को डालने के पक्ष में थे। फारसी और संस्कृत दोनों ही भाषाओं से हिन्दी को सम्पूर्णता प्राप्त नहीं हो रहीं थी।
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का हिन्दी भाषा और साहित्य में योगदान
सहज और प्रवाहमान शब्दों का प्रयोग हिन्दी पत्रकारिता के सिद्धान्त में स्वीकार्य है। इसका आरम्भ करने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे। इसका प्रभाव यह हुआ कि हिन्दी भाषा से बोझिल शब्दों को दूर किया गया।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी की सभी विधाओं में निपुण थे, उन्होंने कविताएँ, नाटक, कथा, आलोचना, रिपोर्ताज, निबन्ध आदि लिखा। पत्रकारिता भी की। उन्होंने बालाबोधनी, कविवचन, सुधा और हरिश्चन्द्र मैगजीन, हरिश्चन्द्र चन्द्रिका पत्रिकाएँ आदि प्रकाशित कीं, जिसके द्वारा उन्होंने हिन्दी को निखारा और नवजीवन देने का प्रयास किया।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचनाधर्मिता में दोहरापन दिखता है, जहाँ वे कविताएँ ब्रज भाषा में लिखते रहे, वहीं उन्होंने बाकी विधाओं में खड़ी बोली में लेखन का सफलतापूर्वक प्रयास किया।
भारतेन्दु आधुनिक खड़ी बोली गद्य के उन्नायक हैं। उनकी पत्रकारिता और गद्य का विपुल रचनात्मक संसार युगीनबोध के साथ ही भावी समस्याओं से दो-चार होता नजर आता है।
भारतेन्दु जी ने भारत की तत्कालीन स्थिति पर ढेरों निबन्ध लिखे, लेकिन दिसम्बर, 1884 में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र चन्द्रिका में प्रकाशित उनका निबन्ध 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है। यह एक युगान्तकारी निबन्ध माना जाता है। 'आर्यदेशोपकारिणी' सभा निमन्त्रण पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जो वहाँ भाषण दिया था, वह 19वीं सदी के उत्तरार्ध में बनती हिन्दी का उदाहरण तो है ही साथ ही उस दौर की भारतीय सोच चिन्तन और उस चिन्तन से बनी दृष्टि का भी उदाहरण है
'भारतवषर्षोन्नति' निबन्ध से हिन्दी नवजागरण की शुरुआत मानी जाती है।
यह हिन्दी के विकसित होने का क्रम था, इसलिए इस पर ब्रज का असर भी दिखता है, लेकिन निबन्ध को विनोद-प्रियता और स्पष्टता के साथ किस तरह प्रस्तुत किया जा सकता है, इस निबन्ध में यह देखा जा सकता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपने निबन्धों, नाटकों व अन्य कृतियों द्वारा देश को जाग्रत करने हेतु तत्पर थे, राष्ट्रीय जागरण की भावना से युक्त उनकी रचनाओं में 'भारत दुर्दशा' व 'भारत जननी' का नाम प्रमुख है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी रचनाओं द्वारा कहते हैं कि जो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति, साहित्य को छोड़ अन्य देशों की सभ्यता, संस्कृति, साहित्य का अनुकरण करते हैं, वह कभी प्रगति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते।
भारतीय लोग उस समय पश्चिमी देशों द्वारा बनाए गए सामानों का उपयोग कर रहे थे। मूलभूत आवश्यकताओं की छोटी-से-छोटी वस्तु पश्चिमी देशों द्वारा बनाई गई थी, जिससे भारतीयों की अधिकतम पूँजी उन्हीं देशों तक पहुँच रही थी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी संस्कृति, सभ्यता, साहित्य का अनुकरण करने की बात कहते हैं, वे अपने देश को हर प्रकार से विकसित करने की बात कहते हैं। वह प्रगति का आधार भाषा व साहित्य को भी मानते हैं, इसलिए वह अपनी भाषा की उन्नति करने की बात कहते हैं।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'कुछ आप बीती, कुछ जग बीती' नाम से हिन्दी का उपन्यास लिखना आरम्भ किया था, लेकिन उनके निधन के कारण यह उपन्यास अधूरा रह गया।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने बहुत प्रभावशाली काव्य भी रचा था, वह आधुनिकता के प्रचारक थे, किन्तु उनके काव्य में पारम्परिकता बोध भी नजर आता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की यदि अकाल मृत्यु न हुई होती तो वह साहित्य व भाषा के लिए अविस्मरणीय कार्य करते, लेकिन हिन्दी भाषा हिन्दी नवजागरण पर जब भी विचार होगा, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बिना वह अधूरा समझा जाएगा।