भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आन्दोलन की वैचारिक पृष्ठभूमि

वैचारिक पृष्ठभूमि : वैचारिक पृष्ठभूमि के अन्तर्गत किसी सिद्धान्त पर आधारित विचार का अध्ययन किया जाता है। वैचारिक पृष्‍ठभूमि के अंतर्गत भारतीय नवजागरण, गांधीवादी दर्शन, अम्बेडकर दर्शन, लोहिया दर्शन, मार्क्सवाद, मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद, उत्तर आधुनिकतावाद, अस्मितामूलक विमर्श आदि के सिद्धान्त, विचारधारा एवं विचार पद्धति का अध्ययन जाता है।

इस पोस्‍ट में भारतीय नवजागरण और स्‍वाधीनता आंदोलन की वैचारिक पृष्‍ठभूमि का अध्‍यय किया जायेगा। 

भारतीय नवजागरण का इतिहास

भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन की वैचारिक पृष्ठभूमि

    नवजागरण का अर्थ

    नवजागरण से अर्थ एक नए विचार या नई चेतना से है जिसके कारण देश में आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक बदलाव लाया जा सकता हो।

    10वीं शताब्दों को भारतीय नवजागरण का काल माना जाता है, जिसे 'रैनेसां', पुनरुत्थान, पुनर्जागरण, नवोत्थान, नजागरण आदि की संज्ञा दी गई है। अंग्रेजी के 'रैनेसां' शब्द के लिए हिन्दी में 'पुनर्जागरण' शब्द का प्रयोग हुआ है। 

    रामधारी सिंह 'दिनकर' ने अपने ग्रन्थ 'संस्कृति के चार अध्याय' में इसे 'नवोत्थान' नाम दिया। वर्तमान में हिन्दी साहित्य में इस काल के लिए 'नवजागरण' शब्द प्रचलित हो गया है। नवजागरण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और नवजागरण' में किया।

    भारतीय नवजागरण के कारण

    राष्ट्रीच जागरण का प्रवाह (प्रवृत्ति) प्रत्येक समाज, क्षेत्र की अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और अर्थिक दशाएँ होती है। परिस्थितियों और घटनाओं के कारण जनसामान्य की चित्तवृत्ति और समाज में आधारभूत बदलाव आते रहते हैं। 

    भारत में बाड़ा आक्रमणों और अंग्रेजी उपनिवेश के कारण देश की सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान धुंधलाने लगी थी। जिसके परिणामस्वरूप भारत में नवजागरण की शुरुआत हुई। 

    नवजागरण का मुख्यं प्रयोजन वेदों, पुराणों और पुरानी सभ्यता संस्कृति का निर्वहन करना नहीं था, बल्कि नई संस्कृति और एक संसार बनाने का प्रयास था। 

    19वीं शताब्दी में 1857 ई. महाविद्रोह राजा राममोहन राय के समाज सुधार कार्य, भारतेन्दु का आगमन तथा 'सरस्वती' पत्रिका द्वारा नवजागरण आरम्भ हुआ व सम्पूर्ण राष्ट्र में नवजागरण के मूल्यों का प्रचार-प्रसार हुआ।

    डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है, भारत के नवजागरण का सम्बन्ध सामान्यतः राजा राममोहन राय से जोड़ा जाता है। भारत ने नवजागरण के सिद्धान्तों को साथ लेकर ही स्वाधीनता आन्दोलन की कई लड़ी की। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को हिन्दी नवजागरण का अग्रदूत माना जाता है, उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज की समस्याओं पर अनेक निबंध और नाटक लिखे, जिसमें उन्होंने भारत की परतंत्रता के कारण बताते हुए, समान्यता प्राप्ति के मार्ग दिखाए। 

    राजा राममोहन राय को भारतीय नवजागरण का जनक कहा जाता है। भारत में नवजागरण का उद्देश्य सामान्य जन के स्वाभिमान को जाग्रत करना तथा राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र में अपने मूल अधिकारों को प्राप्त कर स्वतन्त्रता प्राप्त करना था।

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    भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आन्दोलन

      1. भारतीय नवजागरण की शुरुआत बंगाल से हुई थी। राजा राममोहन राय (1772-1833) इसके प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्‍होंने 1828 में बंगाल में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी।
      2. महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे द्वारा प्रार्थना समाज की और स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। 
      3. ऐसे विभिन्न संस्थानों की स्थापना के पीछे मकसद किसी धार्मिक पंथ की स्थापना करना नहीं था। यह संस्थान धर्म और सामाजिक आचरण का एक नया आदर्श लोगों के सामने प्रस्तुत करना चाहते थे। 
      4. राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध ना केवल लोगों को जागरूक बनाया बल्कि कानून द्वारा प्रतिबंध के लिए भी प्रयास किए और उनकी इन कोशिशों के कारण ही सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा।
      5.  ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को कानूनी स्वीकृति दिलाने का काम किया। 
      6. महाराष्ट्र के ज्योतिबा फूले और अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर जन जागरण का काम किया तथा जाति प्रथा का विरोध किया और आधुनिक शिक्षा के विकास पर बल दिया। महात्मा फुले ने बाल विवाह, जातिप्रथा और अनमेल विवाह जैसी कई बुराइयों को खत्म करने के लिए प्रयास किए। 
      7. ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक मंडल नामक सामाजिक संस्था की तथा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में स्वामी दयानंद सरस्वती तथा उनके सहयोगी ने भी काफी योगदान दिया। 
      8. भारतीय नवजागरण के दौरान लोगों को जागरूक करने के लिए कई पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित की गईं। 
      9. हिंदुओं और मुसलमानों दोनों एकजुट होकर औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया जिसका प्रमाण 1857 का महासंग्राम है। 
      10. नवजागरण के दूसरे नेताओं की तरह सर सैयद अहमद खां (1817-1898) भी अंग्रेजों के समर्थक थे लेकिन उन्होंने मुसलमानों में आधुनिक चेतना जगाने का अत्यंत महत्वपूर्ण काम किया। 
      11. मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्होंने 1873 मोहम्मडन एंग्लो- ओरियंटल कालेज की स्थापना की। यह कालेज ही आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से विख्यात हुआ। 
      12. अलीगढ़ आंदोलन सर सैयद अहमद खां द्वारा शुरू किया गया था। 

    नवजागरण का स्वाधीनता आन्दोलन पर प्रभाव

    भारतीय नवजागरण में सन् 1857 के महाविद्रोह का विशेष महत्त्व है और यह स्वतन्त्रता संग्राम की पहली लड़ाई भी मानी जाती है, इस विद्रोह से पूर्व सभी संघर्ष स्थानीय और असंगठित थे। यह क्रान्ति इतनी सशक्त थी कि देश और समाज को इसने पूरी तरह झकझोर दिया और ब्रिटिशों के मन में भी भय व्याप्त कर दिया। इसी क्रान्ति के बाद भारत में राजनीतिक चेतना का उदय तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयासों में वृद्धि हुई। यह विद्रोह असफल रहा था, परन्तु इससे स्वतन्त्रता प्राप्ति की आकांक्षा और तीव्र हो गई।

    सन् 1857 के पश्चात् भारतीय जनता में स्वतन्त्रता के प्रति चेतना उत्पन्न हुई, साहित्य अखबार के चित्त से जुड़ने वाली हर वस्तु पर नवजागरण के मूल्यो का प्रभाव देखने को मिला। नवजागरण के मूल्यों को लेकर जनता स्वतन्त्रता की माँग करने लगी। 

    स्वतन्त्रता संग्राम के मार्ग पर चलते हुए जनता जाग्रत हुई, जिसके फलस्वरूप बहुत-सी ऐसी घटनाएँ घटीं, जिससे स्वतन्त्रता संग्राम प्रभावित हुआ। 19वीं शताब्दी में नवजागरण का प्रभाव साहित्यिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी देखने को मिला। तत्कालीन साहित्यिक और राजनीतिक गतिविधियाँ भी स्वाधीनता की भावना से युक्त थीं।

    सन् 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसके पश्चात् भारतीय राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों में बहुत उथल-पुथल हुई। सन् 1907 में कांग्रेस नरम दल व गरम दल में विभाजित हो गई। 20वीं शताब्दी के दूसरे दशक में गांधी जी का भारत की सक्रिय राजनीति में प्रवेश हुआ। उन्होंने आन्दोलन की चेतना अर्थात् नवजागरण को एक नया मोड़ दिया। गांधीजी ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अनेक आन्दोलन किए।

    सन् 1896-97 में तिलक की गिरफ्तारी, सन् 1905 में बंगाल विभाजन, सन् 1916 में खिलाफत आन्दोलन की शुरुआत, सन् 1919 में रॉलेट एक्ट पारित होना, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड तथा सन् 1931 में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की फाँसी के परिणामस्वरूप स्वाधीनता आन्दोलन अधिक प्रखरता से आगे बढ़ा। सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वतन्त्रता प्राप्ति की माँग बढ़ने लगी।

    स्वाधीनता आन्दोलन में शिक्षा का महत्त्व

    नवजागरण काल के इस संग्राम का सर्वाधिक प्रभाव सामाजिक क्षेत्र पर पड़ा। अंग्रेज़ों ने अपने राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए शिक्षा को जरूरी माना। सन् 1887 में मुम्बई, कोलकाता, मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। अंग्रेजों द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थानों में भारतीयों ने जो शिक्षा प्राप्त की, उससे उन्हें यूरोप के प्रजातान्त्रिक विचारों और विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए हुए राष्ट्रीय संघर्ष से अवगत कराया गया। शिक्षित भारतीयों ने अमेरिका, इटली व आयरिश जनता की स्वतन्त्रता प्राप्ति की कहानी पढ़ी व उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार किया। ये शिक्षित भारतीय ही स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन के वैचारिक और राजनीतिक नेता बने।

    नवजागरण काल में समाज में व्याप्त कुरीतियाँ

    भारत में एक तरफ जहाँ वैचारिक आन्दोलन का सूत्रपात हो रहा था, वहीं दूसरी ओर भारत देश में विद्यमान सामाजिक कुरीतियों से लड़ रहा था। जाति-प्रथा, छुआ-छूत के साथ-साथ स्त्रियों की दशा दयनीय थी। बाल-विवाह प्रचलित था। विधवा विवाह और पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी। सती प्रथा प्रचलन में थी, स्त्रियों को उनके मृत पति के साथ आग के हवाले कर दिया जाता था। दलितों के रहने के लिए अलग स्थान थे। समाज में छुआ-छूत विद्यमान थी। यह पौराणिक, धार्मिक नियमों व सामाजिक कुरीतियों के कारण चला आ रहा था, परन्तु शिक्षित वर्ग में जागृति आई, जिसके चलते इन सभी धार्मिक, सामाजिक कुरीतियो का विरोध हुआ। समाज सुधारको ने सामाजिक संगठनों की स्थापना कर इन कुरीतियों के विरुद्ध आन्दोलन खड़े किए, जिससे बहुत-से सामाजिक, राजनीतिक सुधार हुए, जिसे भारतीय नवजागरण की संज्ञा दी गई।

    भारतीय नवजागरण का जनक

    भारतीय नवजागरण की विशेषताएं

    भारतीय नवजागरण की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्‍नलिखित है :-  

    1. स्वातंत्र्य-चेतना
    2. प्रदर्शन कलाओं का विकास
    3. समाज और धर्म में सुधार
    4. राष्ट्रप्रेम
    5. जनवादी विचारधारा
    6. अंग्रेज़ी साहित्य, विचारों, और दर्शन का अध्ययन
    7. भारतीय संस्कृति का गौरवगान

    उपसंहार

    नवजागरण के मूल्यों द्वारा समाज और देश को नई शक्ति प्राप्त हुई। राजा राममोहन राय समाज-सुधार के प्रतीक बने, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी नवजागरणयुक्त रचनाओं द्वारा स्वाधीनता का मार्ग प्रशस्त किया। जिस समय भारतीय जनता स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए प्रयासरत थी, उस समय गांधीजी ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन का प्रतिनिधित्व किया। गांधी जी और अन्य सभी क्रान्तिकारियों के असाधारण प्रयासों से भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ-साथ देश में सामाजिक आन्दोलन भी चल रहा था, जिसमें नवजागरण की अवधारणाओं को लेकर महात्मा ज्योतिबा फूले व डॉ. अम्बेडकर ने शोषितों व पिछड़े वर्ग को सफल नेतृत्व प्रदान किया। नवजागरण काल में ही आधुनिक भारत की नींव रखी गई। भारतीय नवजागरण काल को स्वाधीनता व आधुनिक भारत का आधार कहा जा सकता है।

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