आगरा बाजार नाटक - हबीर तनवीर

हबीब तनवीर (Habib Tanvir) भारत के मशहूर पटकथा लेखक, कवि, अभिनेता और नाट्य निर्देशक थे।आगरा बाजार नाटक हबीब तनवीर की सर्वाधिक सफल नाट्य कृतियों में से एक है। इस नाटक का पहली बार मंचन 14 मार्च, 1954 को ज़ामिया मिल्लिया इस्लामिया के आर्ट डिपार्टमेंट के खुले मंच पर हुआ था। 

आगरा बाजार नाटक - हबीर तनवीर

    आगरा बाजार नाटक के प्रमुख पात्र

    ककड़ी बेचने वाला :- जिसके इर्द-गिर्द सम्पूर्ण नाटक का कथानक घूमता है।

    पुलिस वाला :- जो बेनजीर का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके सबसे सफल ग्राहक को खोमचे वालों के बीच झगड़ा कराने के आरोप में गिरफ्तार करता है।

    अन्य पात्र :- फकीर, दूसरा फकीर, तरबूज़ वाला, लड्डू वाला, पतंग वाला, किताब वाला, मदारी, शायर, हमजोली, तज़किरानवीस, पतंग का ग्राहक, घोड़ों का सरदार, रीछवाला, अजनबी, किताब का ग्राहक, लड़का, एक लड़की, बरफ़ वाला, दरज़ी, पनवाड़ी, बंदर, रीछ ।


    आगरा बाजार नाटक के अंक 

    नाटक के अंक :- नाटक मुख्यतः दो अंकों में विभाजित है परंतु अंक का दृश्यवार विभाजित नहीं किया गया है। 

    1. पहला अंक - 'आगरे की वस्तु स्थिति व नजीर के परिचय से शुरू होता हैं जिसे फकीर गाते हैं। 
    2. दूसरा अंक - बंजारा से शुरू होता है व आदमीनामा पर समाप्त हो जाता है।


    आगरा बाजार नाटक का उद्देश्य :-

    • ‘आगरा बाज़ार' का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करना और इस बाज़ार की गतिविधियों से हमें वाकिफ़ कराना ही नाटक का मूल उद्देश्य कहा जा सकता है।
    • आगरा बाज़ार नाटक में पात्रों का जबरदस्त जमघट है। जब यही ड्रामा ओखला में खेला गया था तो 75 आदमी मंच पर आये थे।
    • पात्र की दृष्टि से नाटक के शास्त्रीय लक्षणों के अनुसार कम पात्रों का चयन नाटक में होना चाहिए ; लेकिन इस दृष्टि से यह नाटक उचित नहीं ठहरता।
    • इस नाट्यकृति में किसी केंद्रीय पात्र की योजना नहीं हुई है।


    आगरा बाजार नाटक की समीक्षा

    आगरा बाजार (Agra Bazar) हबीब तनवीर ने भारतीय समकालीन रंगकर्म को ऐसा नया मुहावरा दिया, जो विशुद्ध रूप से देशज होते हुए भी सार्वदेशिक और सार्वजनिक है। वर्ष 1954 में हबीब ने जामिया मिलिया के अध्यापकों एवं छात्रों के साथ ओखला गाँव के कुछ विद्यार्थियों को साथ लेकर नजीर अकबराबादी की कविताओं पर एक छोटा-सा रूपक तैयार किया। यह रूपक लोगों को बहुत पसन्द आया और धीरे-धीरे एक भरे पूरे नाटक की शक्ल अख्तियार करता गया, यह नाटक था 'आगरा बाजार'।

    आगरा बाजार नाटक का कथानक सुदूर अंचल की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रयोग, राजनैतिक और आर्थिक क्रिया-कलापों पर आधारित है। पूरे नाटक का वातावरण एक ऐसे ककड़ी बेचने वाले के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसकी ककड़ी कोई नहीं खरीदता। अनेक प्रयत्नों के बाद वह नजीर की लिखी कविता का सहारा लेता है और अन्तत: उसके माध्यम से उसकी ककड़ियाँ बिकने लगती हैं। इस नाटक के केन्द्र में साधारण व्यक्ति अपनी पूरी त्रासदी के साथ प्रतिबिम्बित होता है। नाटक में बाजार का पूरा माहौल है, जिसमें मेला, मदारी, उत्सव, पतंगबाजी, होली, कृष्णोत्सव हैं।

    नाटक फकीरों के गीत से शुरू होता है, जिसमें आगरा के बाजार की झलक हैं।

    सर्राफ, बनिए, जौहरी और सेठ-साहूकार

    देते थे सबको नकद, सो खाते हैं अब उधार

    बाजार में खड़े हैं, पड़ी खाक बेशुमार 

    बैठे हैं यूँ दुकानों में अपनी दुकानदार 

    जैसे की चोर बैठे हों कैदी कतारबन्द


    नाटक का अन्त नजीर के आदमीनामा के सन्देश से होता है 

    यो आदमी पे जान को वारे हैं आदमी 

    और आदमी ही तेग से मारे हैं आदमी 

    पगड़ी भी आदमी की उतारे हैं आदमी 

    चिल्ला के आदमी को पुकारे हैं आदमी

    और सुन के दौड़ता है, सो वह भी है आदमी।

    आगरा बाजार नाटक केवल एक कवि और उसकी कुछ कविताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ली गई नजीर की कविताएँ नैतिक मूल्यों से ओत-प्रोत हैं। ये कविताएँ नाटक के केन्द्र में साधारण व्यक्ति की परिस्थिति का विवरण प्रस्तुत करती हैं। जीवन एक बाजार है, जहाँ मनुष्य खरीदता-बेचता है। जब वक्त बुरा होता है तो निम्न वर्ग आपस में लड़ता-झगड़ता है। उच्च वर्ग में भी इसी प्रकार की व्यावसायिक बुद्धि दिखाई देती है।

    वेश्यालय में भी अपनी धाक जमाने के लिए खरीद-फरोख्त होती है और बेनजीर का ध्यान आकर्षित करने के लिए पुलिस वाला उसके सबसे सफल ग्राहक को खोमचे वालों के बीच झगड़ा कराने के आरोप में गिरफ्तार कर लेता है, लेकिन ऊँच या नीच, उदार या क्षुद्र सभी आदमी ही हैं। नाटक के अन्त में सभी व्यक्तियों की समानता को 'आदमीनामा' के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। आगरा बाजार नाटक में हबीब तनवीर ने कहीं भी शास्त्र सम्मत नाट्य रूढ़ियों का प्रयोग नहीं किया है। इसमें न तो कोई पात्र नायक के रूप में उभरा है और न ही नायिका के रूप में।

    आगरा बाजार नाटक के महत्वपूर्ण बिंदु

    1. आगरा बाज़ार नाटक के नाटककार - हबीब तनवीर
    2. इस नाट्यकृति का रचनाकाल है - 1954 ई.
    3. आगरा बाज़ार नाटक के कुल दो अंक है ।
    4. इस नाट्यकृति का सर्वप्रथम मंचन - 14 मार्च, 1954 को ज़ामिया मिल्लिया इस्लामिया के आर्ट डिपार्टमेंट के खुले मंच पर हुआ ।
    5. इस नाट्यकृति में जो स्थान है वह आगरा के किनारी बाज़ार का एक चौराहा है ।
    6. आगरा बाज़ार (1954), मिट्टी की गाड़ी (1958) और चरणदास चोर (1975) ये तीन नाटक हबीब तनवीर के सदाबहार नाटक हैं।
    7. भूमिका में हबीब तनवीर ने लिखा है कि इन तीन नाटकों ने उनके ख्वाब (एक पेशेवर थियेटर का निर्माण) को साकार किया है ।
    8. 9 वर्ष मुम्बई में गुजारने और कम से कम 7 वर्ष 'इप्टा' थियेटर का तजुर्बा हासिल करने के बाद 1954 में हबीब तनवीर दिल्ली पेशेवर थियेटर कायम करने के उद्देश्य से आये ।
    9. इस नाट्यकृति में जो काल दिया गया है वह 1810 के आसपास का है ।
    10. आगरा बाज़ार नज़ीर अकबराबादी की नज़्मों पर आधारित है।
    11. आगरा बाज़ार को पहली बार 'आज़ाद किताबघर' ने 1954 में प्रकाशित किया था ।
    12. कथावस्तु के माध्यम से आम आदमी की त्रासदी को प्रस्तुत करना ही इस नाटक का मूल कथ्य है ।

    'आगरा बाजार' नाटक के महत्वपूर्ण संवाद

    1. “बेदर्द सितमगर बे-परवा, बेकल, चंचल, चटकीली से दिल सख्त कयामत पत्थर सा। और बातें नर्म रसीली सी। आनों की बान हठीली सी।", कथन है। - बेनजीर का
    2. “दर्दे-सर हो तो हम दबा दें। दर्दे दिल हो तो उसका इलाज कर दें। दर्द कहीं और हो तो वहाँ मरहम रख दें।", कथन है। - दारोगा का
    3. “गनीमत समझिये, अभी दुनिया में किताबों की इतनी माँग नहीं हैं।", कथन है। - किताब वाले का।
    4. “जमाने को जरूरत दरअसल मुजाहिद की नहीं, मौलाना, बल्कि इंसान की है। इंसान कहीं नजर नहीं आता।", कथन है। - हमजोली का
    5. “लोगों के पास खाने को पैसे हैं नहीं, इसका बंदर देखने के लिए पैसा देंगे।", कथन है। - ककड़ी वाले का।
    6. “बाबा खुदा तुझको खैर दे हम तो न चाँद समझे, न सूरज है जानते बाबा, हमें तो ये नजर आती हैं' रोटियाँ।", कथन है। - फकीर का
    7. “अजी, यहाँ गरदान को कौन गरदाने हैं। इस कूचे में तो पर-कैंच रखे जाते हैं।", कथन है। - दारोगा का।
    8. “सोने से पहले छदाम दो छदाम की ककड़ी बिक गई तो रोजी, नहीं तो रोजा।", कथन है। - ककड़ी वाले का।
    9. “क्या आपको मालूम नहीं। अब तो मुसन्निफ (लेखक) अपनी लागत पर किताब छपवाता है। मैं खुद अपनी नयी किताबें 'करीमा मा-मुकीमा', 'आमदनामा' वगैरह लिये बैठा हूँ, छापने की तोफीक नहीं।", कथन है। - किताब वाला का शायर से।
    10. “अगर आदमी जिंदगी भर मश्क करता रहे तो एकाध शेर हर किसी के 'हाँ' निकल आएगा।", कथन है। - किताब वाले का 
    11. “सहरा में मेरे हाल पे कोई भीन रोया। गर फूट के रोया तो मेरे पाँव का छाला।", कथन है। - हमजोली का (नजीर का शेर)
    12. “अखबार अंग्रेजी में ही निकलेगा, उस जबान में जो कल सारा हिंदुस्तान बोलेगा।", कथन है। - गंगाप्रसाद का


    आगरा बाजार नाटक के संबंध में अलोचकों के कथन 

    नेमिचंद्र जैन के अनुसार -“आगरा बाजार नाटक से अधिक संगीत प्रधान बहुरंगी प्रदर्शन का एक आलेख भर है, जिसके सहारे निर्देशक ने संगीत, संवाद, समूहन, गति-विधान, अभिनय, रंगसज्जा के कल्पनाशील संयोजन द्वारा एक चाक्षुष अनुभव को जीवंत बनाने की कोशिश की हैं।"

    भारत रत्न भार्गव के अनुसार - "आगरा बाजार में प्रयुक्त संवादों में भाषा के कई स्तर हैं। बाजार के बीच आम आदमियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा, ठेठ आंचलिक भाषा हैं। लेकिन उनकी रवानगी, उसकी सबसे बड़ी खसूसियत हैं।"

    नेमिचंद्र जैनके अनुसार -"यह नाटक इंसानियत की, ऊँच-नीच तथा भेदभाव से हटकर आपसी बराबरी और भाईचारे की, भावना को उभारता है। कविता और कला के जिंदगी के साथ जुड़ने और प्रासंगिक होने पर जोर देता है, और सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की भाषा को बोलचाल के पास लाने की जरूरत को भी दिखाता है।"

    कुंज बिहारी शर्मा के अनुसार -"हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित नाटकों में एक ओर 'आगरा बाजार' और 'चरणदास चोर' जैसे प्रयोगधर्मी नाटक हैं तो दूसरी ओर 'बहादुर कलारिन' और 'लोरिक चंदा' (सोनसागर) जैसे लोकनाट्य हैं।"

    कमला प्रसाद के अनुसार -"हबीब तनवीर के नाटकों को देखते हुए यह एहसास होता है कि उनके थियेटर का मकसद हमेशा से यह रहा है कि अवाम की तवज्ज़ो उन समस्याओं की तरफ कराई जाए और उनमें समाजी समझ और जागरूकता लायी जाय जिसमें वो हल हो सके।"

    आगरा बाजार नाटक - हबीर तनवीर

    Agra Bazar Natak MCQ

    प्रश्‍न 01. 'आगरा बाज़ार' नाटक की पात्र 'बेनजीर' कहाँ की रहने वाली थी

    1. हुस्नपुरा
    2. इश्कनगर
    3. आगरा
    4. जश्नपुरा
    उत्तर: 1. हुस्नपुरा


    प्रश्‍न 02. ‘आगरा बाज़ार' नाटक में लड्डूवाले नामक पात्र ने तिल के लड्डू को किसके सामान मीठा बताया है ?

    1. बुरा के सामान
    2. शक्कर के समान
    3. मिसरी के सामान
    4. चीनी के सामान

    उत्तर: 3. मिसरी के सामान


    प्रश्‍न 03. ''मैं तो अब उर्दू-फारसी की किताबों से भर पाया। मैंने फैसला किया है कि देहली से अंग्रेजी जबान में एक अखबार शाया करूँ? मैं आपसे यही कहने आया हूँ कि आप भी यह धंधा छोड़िये और अखबार और रसाइल के काम में लग जाइये। यह नया जमाना है, नये जमाने के मुताबिक रविश इख्तियार कीजिये।'', 'आगरा बाज़ार' नाटक में यह संवाद किस पात्र का है- 

    1. बेनजीर
    2. शोहदा
    3. गंगा प्रसाद
    4. तजकिरानवीस

    उत्तर: 3. गंगा प्रसाद


    प्रश्‍न 04. 'आगरा बाज़ार' नाटक का पात्र 'शोहदा' कौन से नगर में रहता था ?

    1. हुस्नपुरा
    2. इश्कनगर
    3. आगरा
    4. जश्नपुरा

    उत्तर: 2. इश्कनगर


    प्रश्‍न 05. ‘आगरा बाज़ार' नाटक में आये 'तसनीफात' शब्द का क्या अर्थ है

    1. अध्यापन
    2. कृतियाँ
    3. आलोचना
    4. सिद्धहस्

    उत्तर: 2. कृतियाँ


    प्रश्‍न 06. 'आगरा बाज़ार' नाटक के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों पर विचार कीजिये :

    A. रामू, चमेली, बेनी प्रसाद आदि नाटक के पात्र है।
    B. नाटक का प्रकाशन 1954 ई. में हुआ था।
    C. नाटक का आरम्भ में दो फ़क़ीर 'शहर आशोब' गाते हुए प्रवेश करते है।
    D. नाट्य रूप की दृष्टि से 'आगरा बाज़ार' सुगठित यथार्थवादी नाटक है।
    E. नाटक में कुल तीन अंक है।

    नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिये :

    1. केवल A D और E
    2. केवल B, C और D
    3. केवल B, C और E
    4. केवल A. C और E

    उत्तर: 4. केवल A. C और E


    प्रश्‍न 07. ''चना जोर गरम, बाबू, मैं लाया मजेदार चना जोर गरम आगरा शहर बड़ा गुलदस्ता जिसमें बनता चना यह खस्ता पैसे वाले को है सस्ता लड़का मार बगल में बस्ता ले स्कूल का सीधा रस्ता आकर खावे चने ये खस्ता खाकर जाये मदरसे हँसता चना जोर गरम'', उपरोक्त पंक्ति किस नाटक की है -

    1. अंधेर नगरी
    2. भारत दुर्दशा
    3. आगरा बाज़ार
    4. बकरी

    उत्तर: 3. आगरा बाज़ार


    प्रश्‍न 08. 'आगरा बाज़ार' नाटक में आये पात्रों को पहले से बाद के क्रम में लगाईये

    A. लड्डू वाला
    B. तरबूज वाला
    C. फ़क़ीर
    D. बर्फवाला
    E. ककड़ी वाला

    नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिये :

    1. A,B,C,E,D
    2. BE,A,D,C
    3. C,A,B,D,E
    4. A,B,E,C,D

    उत्तर: 3. C,A,B,D,E


    प्रश्‍न 09. आगरा बाजार नाटक के संबंध में निम्नलिखित बातों पर विचार कीजिए-

    A. आगरा बाजार नाटक का रचना काल 1954 है।-
    B. नाटक मे कुल 3 अंक है
    C. नाटक का स्थान किनारी बाजार का एक चौराहा है।
    D. रामादीन, कालू, ललमीनिया आदि नाटक के पात्र है।
    E. नाटक के आरम्भ में दो फकीर शहर, और आशोब, गाते हुए प्रवेश करते हैं।

    नीचे दिए गए विकल्पो में से सही उत्तर का चयन कीजिए:

    1. केवल A, B, D
    2. केवल A, C, E
    3. केवल B, C, E
    4. केवल B, C, D

    उत्तर: 2. केवल A, C, E


    प्रश्‍न 10. नीचे दो कथन दिए गए है :

    कथन-1 आगरा बाज़ार नाटक नजीर अकबराबादी के नज्मों पर आधारित है।

    कथन-2 : नजीर अकबराबादी के काल को अपने काल के परिप्रेक्ष्य से जोड़कर ही उनके नज्मो को प्रयोग हबीब तनवीर ने इस नाटक में किया है।

    उपर्युक्त कथनों के आलोक में निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुने :

    1. कथन 1 और 2 दोनों सही है
    2. कथन 1 सही है, किन्तु कथन 2 गलत है
    3. कथन 1 और 2 दोनों गलत है
    4. कथन 1 गलत है, किन्तु कथन 2 सही है

    उत्तर: 1. कथन 1 और 2 दोनों सही है