सरदार पूर्ण सिंह (Sardar Puran Singh) भारत के विशिष्ट निबंधकारों में से एक थे। ये देशभक्त, शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक एवं लेखक भी थे। इसके साथ ही वे पंजाबी के जाने माने कवि भी थे। आधुनिक पंजाबी काव्य के संस्थापकों में पूर्ण सिंह की गणना होती है।
लेखक परिचय : अध्यापक पूर्णसिंह
पूरा नाम :- सरदार पूर्ण सिंह (Sardar Purn Singh)
जन्म :- 17 फ़रवरी, 1881 (एबटाबाद, पाकिस्तान)
मृत्यु :- 31 मार्च, 1931
पिता :- सरदार करतार सिंह भागर
पति/पत्नी :- माया देवी
विषय :- कविता, लेख, निबंध
भाषा :- हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, उर्दू
प्रसिद्धि :- देशभक्त, शिक्षाविद, लेखक
अध्यापक पूर्णसिंह की प्रमुख रचनाएँ
हिन्दी :- ‘सच्ची वीरता’,‘पवित्रता’, ‘कन्यादान’, ‘आचरण की सभ्यता’।
पंजाबी :- ‘अवि चल जोत’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘खुले मैदान’, ‘कविदा दिल कविता’।
मजदूरी और प्रेम - अध्यापक पूर्णसिंह
'मजदूरी और प्रेम' सरदार पूर्णसिंह का एक प्रसिद्ध तथा प्रेरक निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने हल चलाने वाले किसान को स्वभाव से साधु, त्यागी तथा तपस्वी बताया है। 'खेत' किसान की यज्ञशाला है तथा वह अपने जीवन को तपाते हुए अपनी मेहनत को ही फसल के रूप में उगाता है। खेती ही उसके • ईश्वरीय प्रेम का केन्द्र है। उसका सारा जीवन पत्ते, फूल और फल में बिखरा हुआ है तथा खेत 'की हरियाली ही उसकी वास्तविक खुशी है।
लेखक ने खुली प्रकृति में जीवनयापन करते हुए गडरिए के पवित्र जीवन का निरूपण करते हुए लिखा है कि वह किस प्रकार खुले आकाश के नीचे बैठा ऊन कातता रहता है, उसकी भेड़ें चरती रहती हैं तथा उसकी आँखों में प्रेम की लाली छाई रहती हैं। उसके बच्चे भी शुद्ध हृदय वाले हैं। लेखक ने मजदूर की मजदूरी का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि मजदूर कठिन परिश्रम करके सारे दिन कार्य करता है, किन्तु उसे उसके परिश्रम के अनुकूल मजदूरी नहीं मिलती।
यदि एक विधवा सारी रात बैठकर कमीज सीती है और सीते-सीते थक जाती है, किन्तु पैसे के लोभ से वह कमीज ही नहीं सीती, अपितु कमीज सी कर ही उसे चैन की साँस मिलती है। ऐसा परिश्रम प्रार्थना, संध्या या नमाज से कम नहीं है। मनुष्य के हाथ द्वारा बनी हुई वस्तुओं में निश्चय ही उसकी प्रेममय पवित्र आत्मा निवास करती है। हाथ से किए जाने वाले परिश्रम में एक अद्भुत रस होता है, जीवन रहता है, उसके हृदय का प्रेम रहता है। आभा एवं कान्ति रहती है। मजदूरी और कला का निरूपण करते हुए लेखक ने मशीनों के प्रयोग की भर्त्सना की है और उसे मजदूर की मजदूरी छीनने वाली बताया है। लेखक का मानना है कि मशीनें मनुष्य को निकम्मा और अकर्मण्य बना देती हैं, जबकि हाथ से काम करने से वह सदैव परिश्रमी, उद्योगी और पवित्र रहता है। अत: लेखक मशीनों के स्थान पर हाथ से होने वाले काम को महत्त्व देता है। लेखक ने भीख माँगने के स्थान पर परिश्रम करके जीवनयापन करने को महत्त्व दिया है। लेखक ने परिश्रम एवं हाथ से काम करने वाली प्रवृत्ति को दूध की धारा के समान बताया है, जो मानव के हृदय को पवित्र बनाती है तथा सच्चे ऐश्वर्य की प्राप्ति कराती है। लेखक के अनुसार पश्चिमी देशों में भी लोग अब मशीनों की अपेक्षा मजदूरी को महत्त्व देने लगे हैं। अन्त में लेखक यही सलाह देता है कि जड़ मशीनों की पूजा छोड़कर सचेतन मजदूरों को गले लगाना चाहिए। इसी से मानव का कल्याण होगा तथा समाज समृद्ध व खुशहाल रहेगा।
मजदूरी और प्रेम निबंध से संबंधित प्रश्नोत्तर:
प्रश्न 01. आचरण की सभ्यता तथा मजदूरी और प्रेम निबंध कब प्रकाशित हुए-
A. 1909 ई.
B. 1910 ई.
C. 1912 ई.
D. 1913 ई.
उत्तर: (C) 1912 ई.
प्रश्न 02. मजूदरी और प्रेम निबन्ध में लेखक क्या संदेश देना चाहते है।
A. श्रम का महत्त्व सर्वोपरि है
B. प्रेम के महत्त्व को
C. मजदूर का प्रकृति से लगाव
D. मजदूरी और प्रेम के बीच सम्बन्ध को
उत्तर: A. श्रम का महत्त्व सर्वोपरि है
प्रश्न 03. सरदार पूर्णसिंह पर किस गुरू का प्रभाव है ?
A. स्वामी रामतीर्थ
B. रामानंद
C. राघवानंद
D. रामानंद
उत्तर: A. स्वामी रामतीर्थ
प्रश्न 04. लेखक के अनुसार ईश्वर कैसी प्रार्थनाएँ तत्काल सुनता है ?
A. फकीरों की
B. किसानों की
C. मजदूरों की
D. मौन प्रार्थना
उत्तर: D. मौन प्रार्थना
प्रश्न 05. अध्यापक पूर्ण सिंह किस युग के निबंधकार हैं ?
A. शुक्ल
B. द्विवेदी
C. भारतेंदु
D. शुक्लोत्तर
उत्तर: B. द्विवेदी