उठ जाग मुसाफिर - विवेकी राय

विवेकी राय (Viveki Rai) हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्होने 85 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म में समभ्यस्त हैं। 

उठ जाग मुसाफिर निबंध pdf

लेखक परिचय : विवेकी राय

पूरा नाम :- विवेकी राय (Viveki Rai)

जन्म :- 19 नवम्बर, 1924 (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश)

मृत्यु :- 22 नवम्बर, 2016

अभिभावक :- पिता - शिवपाल राय, माता - जविता देवी

पुरस्कार-उपाधि :- 'यश भारती पुरस्कार', 'प्रेमचन्द पुरस्कार', 'आचार्य शिवपूजन सहाय पुरस्कार' आदि।


विवेकी राय की प्रमुख रचनाएँ 

उपन्यास :- बबूल, पुरुष पुराण, सोनामाटी, समर शेष है, नमामि ग्रामम्, लोकऋण, श्वेतपत्र, मंगल भवन, अमंगलहारी, देहरी के पार।

कहानी-संग्रह :- विवेकी राय ने अब तक नौ कहानी संग्रह लिखे हैं जिसमें 'जीवन- परिधि' (1952), 'नयी कोयल' (1975), 'गूँगा जहाज' (1977), 'बेटे की बिक्री (1977), 'कालातीत' (1982), 'ओझइती' (1980), 'विवेकी राय की श्रेष्ठ कहानियाँ' (1982), 'चित्रकूट के घाट पर ' (1988), और 'श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ' (1996), आदि।

काव्य :- रजनी गंधा, अर्गला, यह जो है गायत्री।

ललित निबंध :- फिर बैतलवा डाल पर, जलूस रुका है, नया गाँवनामा, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, गँवई गंध गुलाब, मनबोध मास्टर की डायरी, आम रास्ता नहीं है, जगत् तपोवन सो कियो।

भोजपुरी रचनाएँ :- 'गंगा, यमुना, सरस्वती'; 'जनता के पोखरा' आदि।


'उठ जाग मुसाफिर' निबंध-संग्रह मे कुल 10 निबंध संकलित हैं -

    1. मेरी दिनचर्या : कुछ आयाम
    2. नमो वृक्षेभ्यः
    3. उठ जाग मुसाफिर 
    4. केना
    5. ग्रीष्म बहार
    6. ततः किम्
    7. तिनडँड़िया चोट से उभरा समय और सवाल
    8. चिंता भारत के उजड़ते गाँवों की
    9. गाँव पर बनाम गाँव में
    10. सवाल जीवन का।


विवेकी राय - उठ जाग मुसाफिर (Uth Jaag Musafir)

विवेकी राय हिन्दी ललित निबन्ध परम्परा के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। 'उठ जाग मुसाफिर' इनका बारहवाँ निबन्ध संग्रह है। विवेकी राय द्वारा रचित निबन्ध 'उठ जाग मुसाफिर' मास्टर साहब से मिलने जाने की घटना से शुरू होता है। वहाँ जाते समय वह कल्पना कर रहा था कि मास्टर साहब हमेशा की तरह तन-मन से पूर्ण स्वस्थ होंगे तथा पूर्ववत् हँसी खुशी मिलेंगे, लेकिन निबन्ध के अन्त तकआते-आते, सन्दर्भों व तर्कों से गुजरते हुए वे क्रमशः वैचारिक होते जाते हैं।

“यह है माता, मातृभूमि, स्वर्ग लोक से भी प्यारी" एक जगा हुआ व्यक्ति इसके लिए तड़प रहा है, इस तड़पन में गीता के ऊँचे ज्ञान की गूँज है। यह भूमि ही माता है और पुरुष ही परमात्मा पिता है और न कोई माता है न कोई पिता –वे तो निमित्त मात्र हैं। इसी माता, भूमि, मातृभूमि और सबका भाव जिसके सपनों में डूबा मुसाफिर पूरे देश को जगाता है। वैचारिक अनुशासन और कथात्मक प्रवाह की समन्विति विवेकी राय के निबन्धों को अलग पहचान देती है।

‘उठ जाग मुसाफिर' निबन्ध को पढ़ने से ऐसा लगता है मानो अपने ही गाँव का कोई बड़ा-बुजुर्ग कोई पुरानी या नई पीढ़ी के किसी पढ़े-लिखे युवक को अपनी स्मृतियों की दुनिया की सैर करा रहा है, तो कभी लगता है कि ‘कविर्मनीषी परिभूस्वयंभू' को चरितार्थ करता हुआ कोई लेखक आधुनिक गाँवों के जीवन की संहिता का दर्शन कर उनके मन्त्रों का गान कर रहा हो। अन्तर इतना सा है कि यह मन्त्र आदिम मन के मुग्ध-गायन जैसा नहीं जैसा कि वैदिक ऋचाओं के सम्बन्ध में माना जाता है।

उठ जाग मुसाफिर निबंध से संबंधित प्रश्नोत्तर:

प्रश्‍न 1.  नीचे दो कथन दिए गए है :

कथन-1 : 'उठ जाग मुसाफिर' निबंध 'उठ जाग मुसाफिर' निबंध संग्रह मे संकलित है।

कथन-2 : 'उठ जाग मुसाफिर' निबंध संग्रह में कुल 10 निबंध संकलित है।

उपर्युक्त कथनों के आलोक में निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुने :

1. कथन 1 और 2 दोनों सही है

2. कथन 1 और 2 दोनों गलत है

3. कथन 1 सही है, किन्तु कथन 2 गलत है-

4. 'कथन 1 गलत है, किन्तु कथन 2 सही है

उत्तर: 1. कथन 1 और 2 दोनों सही है


प्रश्‍न 2. 'उठ जाग मुसाफिर' निबंध के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम के दिनों मे एक गीत गया करते थे वह

1. उठ जाग मुसाफिर भोर भई

2. जवानी संचय होती है, बुढ़ापा दान होता है

3. हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ कल वहाँ चले,

4. चाह नहीं मै सुरबाला के गहनों मे गूँथ जाऊं

उत्तर: 3. हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ कल वहाँ चले


प्रश्‍न 3. 'उठ जाग मुसाफिर' निबंध-संग्रह का प्रकाशन वर्ष है :-

1. 2000 €. 

2. 2008. 

3. 2012 ई. 

4. 2016 ई.

उत्तर: 3. 2012 ई.