about dr br ambedkar: भीमराव रामजी आम्बेडकर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित आंदोलन के साथ-साथ श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री थे। भारतीय संविधान के जनक कहे जाते है।
उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय व लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं थी तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये।
हिंदू धर्म में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सन 1990 में, मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था। प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के रूप में भारत समेत विश्व भर में मनाया जाता है।
प्रारंभिक जीवन (dr b r ambedkar)
डॉ. भीमराव जी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (वर्तमान मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। जिनके पिता रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई की 14 वीं एवं अंतिम संतान थी। पिता रामजी सकपाल, सूबेदार के पद पर भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे। भीमराव का परिवार कबीर पंथ था। वह हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, यह जाति हिंदु धर्म में अछूत कही जाती थी और इस कारण भीमराब को बचपन से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव का समना कराना पड़ता था।
उनके बचपन का नाम 'भिवा' था तथा शिक्षक ब्राह्मण कृष्णा केशव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, उन्होंंने ही अपने नाम पर ही बाबा साहब का 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। उनका विवाह मात्र 15 वर्ष की आयु में ही सन् 1906 में रमाबाई से हो गया था।
शिक्षा (b. r. ambedkar education)
प्रारंभिक शिक्षा में आंबेडकर ने 7 नवंबर 1900 को सातारा नगर की शासकीय हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) से प्रारंभ की और इसी दिन की याद में हर वर्ष 7 नवंबर को विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं।
माध्यमिक शिक्षा उन्होने मुंबई में एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित शासकीय हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। सन् 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था।
सन् 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और साथ ही बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। इस दौरान सन् बीमारी के चलते उनके पिता का 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया।
युवा भीमराव आंबेडकर अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई कोलंबिया यूनिवर्सिटी से करना चाहते थे। जिसके लिए उन्होने वर्ष 1913 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के लिए बड़ौदा महाराजा के यहां आर्थिक मदद के लिए आवेदन दिया। बड़ौदा के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने आंबेडकर को स्कॉलरशिप देना शुरू कर दिया। इस स्कॉलरशिप की मदद से आंबेडकर ने जून 1915 में कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की।
उन्होने कई सोध कार्य किये जिसमें 1916 में अपने तीसरे शोध कार्य ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास (Evolution of Provincial Finance in British India) के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, जो अपने शोध कार्य को प्रकाशित करने के बाद 1917 में अधिकृत रुप से पीएचडी प्रदान की गई।
1923 में, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस "दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन" (रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर की गई थी।
उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स (एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953) सम्मानित उपाधियाँ थीं।
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छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष
आंबेडकर का कहना था कि, 'छुआछूत (अस्पृश्ता) गुलामी से भी बदतर है।'
पढ़ाई करके लोटने के बाद आंबेडकर ने बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ के यहॉं सैन्य सचिव की नौकरी की, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। इसके बाद, उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, किन्तु जातिगत भेदभाव के कारण ये सभी प्रयास तब विफल हो गया। सन् 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि छात्रों ने तो इन्हें खुब पसंद किया परंतु अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया।
भारत सरकार अधिनियम 1919, तैयार कर रही साउथबरो समिति ने भारत के प्रमुख विद्वान के तौर पर आंबेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आंबेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण की मॉंग की।
१९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। तब आंबेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय द्वारा चुप्पी आलोचना की।
आंबेडकर का पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ-साथ अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में सन्दर्भित "बहिष्कार" के कल्याण करना था। दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, आंबेडकर ने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं थी।
सन 1925 में, उन्हें बंबई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आंबेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं।
1 जनवरी 1818 को द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध की कोरेगाँव की लड़ाई में मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आंबेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। बाद में यह विजय स्मारक दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनया गया।
सन 1927 तक, डॉ॰ आंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन को समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया।
25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आंबेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है।
आंबेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद 1930 में, कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया जिसमें लगभग 15,000 स्वयंसेवक इकट्ठे थे।
पूना पैक्ट (poona pact)
अब तक भीमराव आंबेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे तथा वह महात्मा गांधी के अछूत संबंधि विचार के असंतुष्ट थे। इसलिए बिटिश के समक्ष भारत के अछूत लोगो को दो वोट का अधिकार की मॉग की इसे हि इसी के संबंध में महात्मा गांधी और आंबेडकर के बीच जो समझौते हुये उसे ही पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है।
लंदन में 8 अगस्त, 1930 को प्रथम गोलमेज सम्मेलन में आंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा, सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है।
बाबा साहव की अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए भी आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गाँधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आंबेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गाँधी का मानना था कि अछूतों के पृथक निर्वाचिका से हिंदू समाज का विभाजन होगा।
1932 में जब ब्रिटिशों ने आंबेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। जिसके तहत पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
गाँधी इस समय पूना की येरवडा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा के असंतुष्ट होकर उन्होने मरण व्रत रख लिया। तभी आंबेडकर ने कहा कि "यदि गाँधी देश की स्वतंत्रता के लिए यह व्रत रखता तो अच्छा होता, लेकिन उन्होंने दलित लोगों के विरोध में यह व्रत रखा है, जो बेहद अफसोसजनक है। जबकि भारतीय ईसाइयो, मुसलमानों और सिखों को मिले इसी पृथक निर्वाचन के अधिकार को से गाँधी को कोई आपत्ति नहीं थी।"
आंबेडकर ने गॉंधी जी ऐसी दलित विरोधी प्रक्रिया का विरोध किया। देश में बढ़ते दबाव को देख आंबेडकर 24 सितम्बर 1932 को शाम पांच बजे येरवडा जेल में गाँधी और आंबेडकर के बीच समझौता हुआ, जो बाद में पूना पैक्ट के नाम से जाना गया। इस समझौते मे आंबेडकर ने दलितों को कम्यूनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ने की घोषणा की। लेकिन इसके साथ हीं कम्युनल अवार्ड से मिली 78 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली। इसके साथ ही अछूत लोगो के लिए प्रत्येक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भी भागीदारी सुनिक्षित करवाई।
राजनीतिक जीवन
आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 से 1956 तक वह राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। 13 अक्टूबर 1935 को आंबेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य बने और इस पद पर उन्होने 2 वर्षो तक कार्य किया। इसके पश्चात् वह बंबई(अब मुंबई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' बनवाया और उनकी निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, जो उससमय दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष 27 मई 1935 को लंबी बीमारी के चलते पत्नी रमाबाई की मृत्यु हो गई।
1936 में, आंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो मात्र एक वर्ष 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आंबेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया।
आंबेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशन किया, जो उनके द्वारा न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आंबेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की तथा गॉंधी जी द्वारा अछूत समूदाय को हरिजन कहने के कांगेस के फैसले की निंदा की।
1942 में आंबेडकर द्वारा ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन की स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के तक, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप कार्य किया। आंबेडकर ने इन सब के साथ ही भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आंबेडकर ने 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' पुस्तक लिखा, जिसमें मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की मांग की निंदा की।
'व्हॉट काँग्रेस एंड गाँधी हैव डन टू द अनटचेबल्स?' (काँग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिये क्या किया?) किताब में आंबेडकर ने गाँधी और कांग्रेस पर अछूतों के संबंध में ढोंग करने का आरोप लगाया।
आंबेडकर की पार्टी ने 1946 में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए हुये चुनाव में खराब प्रदर्शन किया। बाद में वह बंगाल में मुस्लिम लीग से संविधान सभा में चुने गए थे। आंबेडकर ने बॉम्बे उत्तर में से 1952 का पहला भारतीय लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलकर से हार गए। 1952 में आंबेडकर राज्य सभा के सदस्य बन गए। उन्होंने भंडारा से 1954 के उपचुनाव में फिर से लोकसभा में प्रवेश किया, लेकिन कांग्रेस पार्टी जीती से हार गए। वर्ष 1957 में दूसरे आम चुनाव के समय तक आंबेडकर की परिनिर्वाण (मृत्यु) हो गया था।
धर्म परिवर्तन की घोषणा
आंबेडकर कहते है कि हिन्दू समाज वर्ण व्यवस्था है जो कि समानता के एकदम विपरीत है हिन्दू समाज का मानना है कि “मनुष्य धर्म के लिए हैं” जबकि आंबेडकर मानते है कि "धर्म मनुष्य के लिए हैं।" आंबेडकर समझते है कि ऐसे धर्म में रहने से कोई मतलब नहीं जिसमें मनुष्यता का कोई स्थान न हो। जिसमे अपने ही धर्म के अनुयायिओं (अछूतों को) को समानता प्रदान नहीं कर सकता, जिसमें न धर्म की शिक्षा प्राप्त कर सकते है, अपने अनुसार व्यवसाय कर सकते तथा जहॉं इंसान को इंसान की परछाई से नफरत हो जहॉं समानता को कोई स्थान न हो। ऐसा धर्म व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का हनन करते हो ऐसे धर्म में रहने से अच्छा किसे ऐसे धर्म की शरण ली जाए जिसका केन्द्र मनुष्य और नैतिकता हो, उसमें स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व के नियम पर आधारित हो।
आंबेडकर ने कहा कि,
"मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा"
उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया। इस संबंध में उन्होने धर्म-परिर्वतन की घोषणा की तथा समस्थ्य धर्म का अध्ययन किया। इस बीच अपनी सभाओं और भाषण में धर्म-परिर्वतन पर जोर दिया कि हिंदूओ का उध्दार केवल और केवल हिंदू धर्म छोड़ने में ही है। आंबेडकर के धर्म-परिर्वतन के फैसले से गाँधी जी नखुश थे।
आंबेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 वर्ष तक के समय में विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। उनके द्वारा इतना लंबा समय लेने का मुख्य कारण यह भी था कि वो चाहते थे कि जिस समय वो धर्म परिवर्तन करें उनके साथ ज्यादा से ज्यादा उनके अनुयायी धर्मान्तरण करें। आंबेडकर बौद्ध धर्म को पसन्द करते थे क्योंकि उसमें तीन सिद्धांतों का समन्वित रूप मिलता है जो किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता। बौद्ध धर्म प्रज्ञा (अंधविश्वास तथा अतिप्रकृतिवाद के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करुणा (प्रेम) और समता (समानता) की शिक्षा देता है। आंबेडकर के अनुसार सच्चा धर्म वो ही है जिसका केन्द्र मनुष्य तथा नैतिकता हो, विज्ञान अथवा बौद्धिक तत्व पर आधारित हो, न कि धर्म का केन्द्र ईश्वर, आत्मा की मुक्ति और मोक्ष। साथ ही उनका कहना था धर्म का कार्य विश्व का पुनर्निर्माण करना होना चाहिए ना कि उसकी उत्पत्ति और अंत की व्याख्या करना। वह जनतांत्रिक समाज व्यवस्था के पक्षधर थे, क्योंकि उनका मानना था ऐसी स्थिति में धर्म मानव जीवन का मार्गदर्शक बन सकता है। ये सब बातें उन्हें एकमात्र बौद्ध धर्म में मिलीं।
संविधान निर्माण (the constitution of india b. r. ambedkar)
गाँधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। जिसके परिणामस्वरूप भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 को कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने आंबेडकर को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में चुना गया। संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष पद पर 29 अगस्त 1947 को आंबेडकर को चुना गया।
आंबेडकर एक बुद्धिमान संविधान विशेषज्ञ थे, जिन्होनें 60 देशों से अधिक संविधानों का अध्ययन किया था। आंबेडकर को "भारत के संविधान का पिता" कहा जाता है।
आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है तथा महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था।
आंबेडकर ने कहते है कि, ''मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है और साथ ही इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य गलत था।
उपलब्धियां (Achievements of dr b r ambedkar)
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बाबासाहेब आम्बेडकर का महापरिनिर्वाण
डॉ० भीमराव अम्बेडकर जयंती (Ambedkar jayanti)
अम्बेडकर की पुस्तकें (br ambedkar books)
अम्बेडकर ने अपने जीवनकाल में बहुत-सी पुस्तके लिखी जिनमें से कुछ Books निम्न है:-
1.भारत में जातियाँ: उनका तंत्र, उत्पत्ति
और विकास-1916
2. मूक नायक (साप्ताहिक)-1920
3.रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान-1923
4. बहिष्कृत भारत (भारत बहिष्कृत)-1927
5. जनता (साप्ताहिक) - 1930
6. जाति का विनाश-1936
7.फेडरेशन वर्सेज फ्रीडम-1939
8.पाकिस्तान पर विचार- 1940
9. रानाडे, गांधी और जिन्ना- 1943
10. श्री गांधी और अछूतों की मुक्ति- 1943
11. कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के साथ क्या किया- 1945
12. पाकिस्तान या भारत का विभाजन- 1945
13.राज्य और अल्पसंख्यक- 1947
14. शूद्र कौन थे- 1948
15. भाषाई प्रांत के रूप में महाराष्ट्र- 1948
डॉ भीमराव अंबेडकर को मिले पुरस्कार व सम्मान
- बोधिसत्व (1956)
- भारत रत्न (1990)
- पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004)
- द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012)
साहेब अंबेडकर के अनमोल विचार (Ambedkar quotes)
Dr br ambedkar FAQ :-
प्रश्न: भारत के संविधान के निर्माता कौन है?
उत्तर: भारत के संविधान के निर्माता के तौर पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को जाना जाता हैं। क्योंकि संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष रहें जिसका मुख्य कार्य संविधान का निर्माण करना ही था ।
प्रश्न: बाबा साहब ने दूसरी शादी क्यों की?
उत्तर: जब बाबा साहब की तबियत खराब हुई तो वह इलाज के लिए वह बंबई गए। वहीं की डॉक्टर सविता इलाज के दौरान अम्बेडकर के करीब आईं। और अम्बेडकर ने सविता के साथ दूसरे विवाह करने का फैसला किया। उस समय तक अम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो चुका था।
प्रश्न: पूना पैक्ट समझौता कब हुआ था?
उत्तर: पूना पैक्ट समझौता 24 सितंबर 1932 को हुआ था।
प्रश्न: अंबेडकर किस लिए प्रसिद्ध है?
उत्तर: बी आर अंबेडकर को हम बाबासाहेब अम्बेडकर के नाम से भी जानते है और वह भारतीय संविधान के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं इसलिए उन्हें संविधान निर्माता भी कहा जाता है। वह एक बहुत प्रसिद्ध राजनीतिक नेता, प्रख्यात न्यायविद, बौद्ध कार्यकर्ता, दार्शनिक, मानवविज्ञानी, इतिहासकार, वक्ता, लेखक, अर्थशास्त्री, विद्वान और संपादक भी थे।
प्रश्न: अंबेडकर के अच्छे गुण क्या हैं?
उत्तर: अम्बेडकर एक महान और गतिशील व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उनका जीवन बचपन से लेकर अंतिम आंदोलन तक प्रेरणाओं से भरा पड़ा है। उनमें दक्षता, ईमानदारी, क्रांतिकारी, दूरदर्शी दृष्टिकोण, नेतृत्व, अहिंसक दृष्टिकोण और महत्वाकांक्षी विचार जैसे विभिन्न गुण हैं। इन गुणों ने उन्हें युवा पीढ़ी के लिए आदर्श बनाया
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