महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार , पत्रकार एवं युग प्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। 

उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। 

    महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण

    हिन्दी भवजागरण के क्षेत्र में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान महत्त्वपूर्ण है। महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) को जनता द्वारा आचार्य की उपाधि मिली थी। हिन्दी नवजागरण तीन चरणों में बाँटा गया- प्रथम 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम विद्रोह, द्वितीय भारतेन्दु का आगमन तथा तीसरा व सबसे महत्त्वपूर्ण चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा हिन्दी भाषा के लिए किए गए कार्य को माना गया। 

    महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण

    महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से हिन्दी भाषा के विकास के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। उन्होंने कवियों को विविध विषयों पर लिखने की प्रेरणा दी व लेखकों को उनकी कमियों से अवगत कराया तथा भाषा की व्याकरणिक भूलों को सुधार कर भाषा परिष्कार किया व काव्य भाषा में ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली अपनाने का सुझाव दिया, जिससे गद्य व पद्य की भाषा एक हो। 

    द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा मे व्याकरण शुद्धि, विराम चिह्नों के प्रयोग व भाषा संस्कारों को कुशल रूप प्रदान किया। द्विवेदी जी ने 'कवि कर्त्तव्य' जैसे निबन्ध लिखकर कवियों को भाषा शैली, छन्द योजना, विषय-वस्तु सम्बन्धी अनेक निर्देश दिए।

    सरस्वती पत्रिका और हिन्दी नवजागरण महावीर प्रसाद द्विवेदी सन् 1903 में 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादक बने। सरस्वती पत्रिका ने राष्ट्र का नवजागरण से परिचय कराने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। द्विवेदी जी ने इस पत्रिका द्वारा नवजागरण की भावना से युक्त लेखों को प्रकाशित कराया, जिससे नवजागरण के विचार आम जन तक पहुँच सकें।

    महावीर प्रसाद द्विवेदी और 'सरस्वती' से प्रेरित होकर बहुत-से लेखकों ने खड़ी बोली में लिखना आरम्भ किया। ये सभी पहले ब्रजभाषा तथा प्राचीन विषय-वस्तु शैली का प्रयोग कर रहे थे। ये सभी लेखक द्विवेदी जी की तरह बहुभाषाविद्, बहुज्ञ और विज्ञान एवं वैज्ञानिक दृष्टि को महत्त्व देने वाले लेखक थे। इन्हीं के प्रयासों से नवजागरण सम्भव हुआ। द्विवेदी जी के एक निबन्ध से प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत नामक महाकाव्य की रचना की।

    द्विवेदी जी सिर्फ क्रिक्वता, कहानी, आलोचना आदि को ही साहित्य मानने के विरुद्ध थे। वे अर्थशास्त्र, इतिहास, पुरातत्व, समाजशास्त्र आदि विषयों को भी साहित्य के ही दायरे में रखते थे। असल में स्वाधीनता, स्वदेशी और स्वावलंबन को गति देने वाले ज्ञान-विज्ञान के तमाम आधारों को वे आंदोलित करना चाहते थे।  इसके लिए उन्होंने सिर्फ उपदेश नहीं दिया, बल्कि मनसा, वाचा, कर्मणा स्वयं लिखकर दिखा दिया। उनके इस रूप का सबसे बड़ा प्रमाण 1906-7 में लिखी उनकी विख्यात पुस्तकं 'सम्पतिशास्त्र' है।

    महावीर प्रसाद द्विवेदी के संबंध में विद्वानों के मत

    हिन्दी नवआगरण को जो चेतना भारतेन्दु युग से मिली, उसे उन्होंने और मजबूती और प्रखरता प्रदान की थी। प्रमुख साहित्यकारों ने भी उनके द्वारा हिन्दी के लिए किए गए कार्य को सराहा और अपने विचार रखे।

    शुक्ल जी के विचार हैं, "यदि द्विवेदी जी न उठ खड़े होते तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण विरुद्ध और ऊटपटांग भाषा चारों ओर दिखाई पड़ती थी, उसकी परम्परा जल्दी न रुकती।'' शुक्ल जी के अनुसार, द्विवेदी जी ने भाषा सुधार के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

    रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "द्विवेदी जी की युगान्तकारी भूमिका यह है कि उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से अनेक समस्याओं का विवेचन गहराई से किया।"

    हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार - “पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के स्पष्टवादिता से भरे हुए और नई प्रेरणा देने वाले निबंध यद्यपि बहुत गंभीर नहीं कहे जा सकते, परन्तु उन्होंने गंभीर साहित्य के निर्माण में बहुत सहायता पहुँचाई।" 

    प्रेमचन्द ने लिखा है, "आज हम जो कुछ भी हैं, उन्हीं के बनाए हुए हैं, उन्होंने हमारे लिए पथ भी बनाया और पथ प्रदर्शक का काम भी किया।" 'हिन्दी के लिए उन्होंने अपना तन-मन-धन सब कुछ अर्पित कर दिया।'

    निराला लिखते है - "वह आधुनिक हिंदी के निर्माता हैं, विधाता हैं, सर्वस्व हैं। वह राष्ट्रभाषा हिंदी के मूर्तिमान स्वरुप हैं। उन्हें लोग आचार्य कहते हैं, वह सचमुच आचार्य हैं।

    नन्द दुलारे बाजपेयी कहते है - द्विवेदी जी और 'सरस्वती' ने जो केन्द्रीयता और हैसियत अपने समय में हासिल की, वह न तो किसी दूसरे संपादक को मिली और न किसी दूसरी पत्रिका को। 

    महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा राजभाषा के लिए किए गए कार्य

    महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी में अनेक विधाओं की रचना की, जैसे- कहानी, आलोचना, अनुवाद, कविता, आदि। द्विवेदी जी अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास आदि विषयों को भी साहित्य के अन्तर्गत रखते थे। द्विवेदी जी स्वाधीनता प्राप्त करने के सभी साधनों को गति देना चाहते थे। इसलिए वह इन सभी विषयों को साहित्य के अन्तर्गत रखते थे।

    महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा राजभाषा के लिए किए गए कार्य :-

    1. खड़ी बोली हिन्दी को मान्यता
    2. हिन्दी भाषा को परिष्कृत किया
    3. सरस्वती पत्रिका का सम्पादन
    4. हिन्दी साहित्य में विविधता
    5. अर्थशास्त्र, विज्ञान, इतिहास, समाजशास्त्र विषयों पर लेखन
    6. भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान।

    आगे चलकर उनके कारवाँ को हजारीप्रसाद द्विवेदी, भगवतशरण उपाध्याय, रामविलास शर्मा, राहुल सांकृत्यायन जैसे कुछ लोगों ने ही आगे बढ़ाया। महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं से हिन्दी के साथ-साथ राष्ट्र में भी नवजागरण की भावनाएँ विकसित हुईं। व्यक्ति, समाज, भाषा, राष्ट्र, सम्पूर्ण मानवता की मुक्ति को उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा प्रबल स्वर प्रदान किया।

    द्विवेदी युग के रचनाकारों ने न केवल साहित्य व देश की समस्याओ को उठाया, बल्कि उनका समाधान भी बताया। गद्य लेखन व सम्पादन में भी द्विवेदी जी को विशेष सफलता मिली। 'काव्यमंजूषा', 'सुमन', 'कान्यकुब्ज', 'अबला विलाप', 'गंगालहरी', 'ऋतु तरंगिणी', कुमार सम्भवसार (अनूदित) आदि इनकी रचनाएँ हैं। द्विवेदी युगीन काव्य में राष्ट्रप्रेम, नैतिकता, आदर्शवाद, समाज सुधार आदि प्रवृत्तियाँ रही। 

    हिन्दी नवजागरण परक चेतना को आगे बढ़ाने में 'सरस्वती' पत्रिका ने महती भूमिका अदा की। इस पत्रिका के अतिरिक्त कुछ अन्य पत्रिकाओ-मर्यादा, प्रभा, प्रताप, मातृभूमि, स्त्रीदर्पण आदि ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। द्विवेदी जर्जा के अथक प्रयासों से खड़ी बोली काव्य की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई।

    यह भी देखें 👇

    नवजागरण का अग्रदूत मानने के कारण 

    द्विवेदी जी को नवजागरण का अग्रदूत मानने के पीछे तमाम कारण है - 

    1. द्विवेदी जी हिन्दू मुस्लिम एकता के साथ-साथ हिन्दी-उर्दू एकता के भी पक्षधर थे। 
    2. उन्होंने सहज और सरल हिन्दी में लिखा। 
    3. द्विवेदी युग के लेखकों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया था। 
    4. महावीर प्रसाद द्विवेदी राजभाषा के प्रबल पक्षधर थे। 
    5. द्विवेदी ने राष्ट्र और भाषा दोनों की पराधीनता स्वीकार नहीं थी।
    6. द्विवेदी युगीन प्रवृत्तियों में आदर्शवाद, बौद्धिकता, मानवता, राष्ट्रीय भावना, और सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की भावना शामिल थी। 

    द्विवेदी जी के विचार

    द्विवेदी जी लिखते हैं - 
    1. "यह देश इने-गिने अंग्रेजी पढ़े हुए वकीलों, बैरिस्टरों, मास्टरों, इंस्पेक्टरों, दफ्तर के बाबुओं, कौंसिल के मेम्बरों, महाजनों और व्यवसायियों से ही आबाद नहीं। आबाद है वह उन लोगों से जिनकी संख्या फीसद 75 है, जो देहात में रहते हैं और जो विशेष करके खेती से अपना गुजर- बसर करते हैं।
    2. "स्वदेश-प्रेम से मनुष्य के हृदय में एक मिथ्या अहंकार का उदय होता है, उसकी बुद्धि संकुचित हो जाती है, यहाँ तक कि उसके प्रत्येक कार्य में, उसकी प्रत्येक इच्छा में, एक घृणित स्वार्थ की दुर्गन्ध आने लगती है ।"
    3. “यूरोप के कुछ मदान्ध मनुष्य समझते हैं कि परमेश्वर ने एशिया के निवासियों पर अधिपत्य् करने के लिए ही उनकी सृष्टि की है। जिस एशिया ने बुद्ध, राम और कृष्ण को उत्पन्न किया है, उसने दूसरों की गुलामी का ठेका नहीं ले रखा।"
    4. "इस दुनिया की सुष्टि एक ऐसी ईश्वर ने की है जिसकी कोई जाति नहीं, जो उच्च-नीच का कायल नहीं, जो ब्राह्मण, अब्राह्मण, चांडाल और कीड़ों- मकोड़ों तक में अपनी सत्ता प्रकट करता है। छुआछूत को मानने वालों को ऐसे ईश्वर के संसार की छौड़ देना चाहिए।"

    महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण के महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

    • हिन्दी नवजागरण का तीसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी के आगमन से माना जाता है और इसमें सबसे अहम् पड़ाव है 'सरस्वती पत्रिका' का था।
    • महावीर् प्रसाद द्विवेदी हिंदी के पहले लेखक थे, जिन्हें जनता ने आचार्य की उपाधि दी।
    • वे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य आदि की तरह न तो किसी मत के प्रवर्तक थे और न किसी महाविद्यालय के प्रधान अध्यापक।
    • डॉ. रामविलास शर्मा ने 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण' (1977) लिख कर न सिर्फ उनकी युगांतकारी भूमिका का विस्तार से वस्तुनिष्ठ आकलन किया, बल्कि यह भी बताया कि हिंदी में भाषा, साहित्य और विचार की दृष्टि से नए युग को संभव बनाने वाले वे अद्वितीय योद्धा थे ।
    • 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण' (1977) नामक पुस्तक के द्वारा डॉ रामविलास शर्मा ने 'नवजागरण' की नहीं बल्कि 'हिंदी नवजागरण' की संकल्पना प्रस्तुत की।
    • एक विशेष प्रकार की बौद्धिकता महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके मंडल के मैथिलीशरण गुप्त सदृश कवियों में अधिक है, जिसका दुखद परिणाम 'इतिवृत्तात्मकता' है।
    • भावबोध और विचारबोध की दृष्टि से समूचा भारतीय नवजागरण एक संश्लिष्ट प्रक्रिया है।