मोहन राकेश (Mohan Rakesh) द्वारा लिखित आधे-अधूरे एक प्रमुख नाटक है। इस नाटक में कहीं भी पूर्णता नहीं है, सब आधे-अधूरे हैं। यह नाटक मोहन राकेश ने सामाजिक विसंगतियों को लेकर लिखा है। आधे-अधूरे स्त्री-पुरुष के बीच के लगाव और तनाव की कहानी है। महेन्द्रनाथ, सावित्री, किन्नी, जुनेजा, अशोक, बिन्नी, सिंघानिया, जगमोहन आदि नाटक के प्रमुख पात्र हैं।
नाटक के प्रमुख पात्र
सावित्री :- एक कामकाजी मध्यवर्गीय शहरी स्त्री जो अपने पति के पास काम न होने के कारण काम की तलाश में बाहर निकलती है।
काले कपड़ों वाला पुरुष :- जो चार रूपों में दिखाया गया है-
- महेंद्रनाथ (सावित्री का पति)
- सिंघानिया (सावित्री का बॉस)
- जगमोहन
- जुनेजा
बिन्नी :- सावित्री की बड़ी बेटी जो अपनी माता के मित्र मनोज के साथ भागकर शादी करती है।
किन्नी :- सावित्री की छोटी बेटी जो अश्लील उपन्यासों को पढ़ने में व्यस्त रहती है।
अशोक :- सावित्री का पुत्र जिसमें अपने माता-पिता व समाज के प्रति विद्रोह की भावना है।
मनोज :- बिन्नी का पति (मात्र संवादों में उल्लेखनीय)।
नाटक का विषय :-
- आधे-अधूरे नाटक मध्यवर्गीय वैवाहिक जीवन पर आधारित है।
- इस नाटक में महानगरों में रहने वाले मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों और विडंबनाओं को दिखाया गया है।
- इस नाटक में तीन महिला पात्र और पांच पुरुष पात्र हैं।
- इसमें परिवार का प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग के संत्रास का भोग करता है।
- चार पुरुष पात्रों की भूमिका एक ही पुरुष पात्र निभाता है।
- यह नाटक पूर्णता की तलाश का नाटक है।
- इसे मिल का पत्थर भी कहा जाता है।
- यह नाटक आम बोलचाल की भाषा में लिखा गया है।
'आधे-अधूरे' नाटक की समीक्षा
आधे-अधूरे आधुनिक मध्यम वर्गीय, शहरी परिवार की कहानी है। परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र और बेटियाँ हैं। पत्नी के चार मित्र हैं। पति महेन्द्रनाथ बिजनेसमैन है। उसे व्यापार में असफलता हाथ लगती है। पत्नी सावित्री अपने पति के पास काम नहीं होने के कारण नौकरी करने घर के बाहर निकलती है, तब उसे पति के दायित्व बोध में कमी नज़र आती है। उसे लगता है कि वह सबसे बेकार आदमी है।
वह सम्पूर्ण मनुष्य नहीं है। जब वह घर से बाहर निकलने पर सावित्री की मुलाकात चार लोगों से होती है। पहला धनी व्यक्ति है जो मित्र स्वभाव का है और सज्जन है। दूसरा डिग्री धारी व्यक्ति का नाम शिवदत्त है जो सारे संसार में घूमता रहता है। वह एक निष्ठ नहीं है। तीसरा व्यक्ति मनोज है जो सामाजिक है, वह सावित्री से दोस्ती तो करता है, परन्तु उसकी बेटी से प्रेम विवाह करता है तथा चौथा व्यक्ति चालाक और घटिया किस्म का एक व्यापारी आदमी होता है।
चालीस वर्षीय सावित्री जिसके चेहरे पर अभी भी चमक बरकरार है, अपनी जिन्दगी के खालीपन को भरने के लिए एक सम्पूर्ण पुरुष की तलाश में रहती है। इस क्रम में वह उपरोक्त चारों पुरुषों के सम्पर्क में आती है, परन्तु इनसे मिलने के बाद भी उसे पूर्णता का अहसास नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए सवित्री का उपयोग करते है। पहला व्यक्ति मित्र ढंग का है। अपनी स्त्री से उसकी नहीं पटती। पत्नी को छोड़कर वह सावित्री के साथ सम्बन्ध बनाता है, लेकिन जब वह बीमार होता है तो पुनः सावित्री के पास से लौटकर अपनी पत्नी के पास वापस आ जाता है।
मनोज सावित्री से मित्रता तो करता है पर सावित्री की बेटी बिन्नी को प्रेमपाश में बाँधकर उसके साथ भाग कर शादी रचाता है। जब बेटी को अहसास होता है कि उसने जिस इच्छा से मनोज को अपनाया था वह पूरी नहीं हो रही है तो वह भी अपनी माँ के पास वापस लौट आती है। छोटी बेटी (किन्नी) मुँहफट है। वह अश्लील उपन्यासों में रमी रहती है तथा लड़कों से सम्बन्ध बनाने की इच्छुक रहती है। बड़ी बेटी को माँ से कोई सहानुभूति नहीं है। बेटे अशोक में भी असन्तोष की भावना घर किए हुए है। उसके मन में समाज के प्रति विद्रोह की भावना है। माँ-बाप के प्रति भी विद्रोह की भावना है। तीनों सन्तानें आधुनिक परिवेश की उपज हैं। परिवार के तनाव और माता-पिता के सम्बन्धों के कारण उनमें ऐसी भावना घर कर गई है।
नाटक के अंतिम में सभी पात्र वापस घर लौट आते हैं। सावित्री शिवदत्त के घर से निकल पड़ती है। शिवदत्त उसे नहीं रोकता और लौटकर वह घर चली आती है। महेन्द्रनाथ भी अपने मित्र के यहाँ से लौट आता है और बेटी भी आ जाती हैं। अन्त में लेखक यह बताना चाहते हैं कि परिवार ही वह धुरी है जो सभी सदस्यों को बाँधे रखती है। परिवार रूपी संस्था ही एक प्रकार से जीवन को अनुशासित रखती है, किन्तु आज प्रत्येक परिवार में कलह, उच्छृंखलताएँ, अनुशासनहीनता दिखाई दे रही हैं जिनका मुख्य कारण है, समाज का औद्योगीकरण तथा भौतिकवादी स्वभाव, लेकिन फिर भी यदि परिवार अनुशासित है तो यह बिखराव से बच सकता है। नाटककार मोहन राकेश ने सावित्री तथा महेन्द्रनाथ के माध्यम से साधारण मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों को चित्रित किया है।
आधे-अधूरे नाटक के महत्वपूर्ण कथन
- “एक गुबार-सा है जो हर वक्त मेरे अंदर भरा रहता है और मैं इंतजार में रहती हूं जैसे कि कब कोई बहाना मिले जिससे उसे बाहर निकाल लूँ और आखिर?”, कथन है।- बिन्नी का
- “दो आदमी जितना ज्यादा साथ रहें, एक हवा में सांस लें, उतना ही ज्यादा अपने को एक-दूसरे से अजनबी महसूस करें?”, कथन है।- बिन्नी का
- ” मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज लेकर गई हूं जो किसी भी स्थिति में मुझे स्वभाविक नहीं रहने देती।”, कथन है।- बिन्नी का
- “मैं यहां थी, तो मुझे कई बार लगता था कि मैं एक घर में नहीं, चिड़ियाघर के एक पिंजरे में रहती हूं।”, कथन है।- बिन्नी का
- “मुझे पता है मैं एक कीड़ा हूं जिसने अंदर ही अंदर इस घर को खा लिया है पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेशा के लिए भर गया है।”, कथन है।- महेन्द्रनाथ ने सावित्री से
- “यहां पर सब लोग समझते क्या है मुझे? एक मशीन, जोकि सबके लिए आटा पीसकर रात को दिन और दिन को रात करती रहती है ? मगर किसी के मन में ज़रा-सा भी ख्याल नहीं है कि इस चीज के लिए कि कैसे में”, कथन है।- सावित्री का
- “मैं वहां पहुंच गई हूं जहां पहुंचने से डरती रही हूं जिंदगी भर।”, कथन है।- सावित्री का
- “आदमी किस हालत में सचमुच एक आदमी होता है?”, कथन है।- सावित्री का
- “आज महेन्द्र एक कुढ़ने वाला आदमी है। पर एक वक्त था जब वह सचमुच हँसता था— अन्दर से हँसता था। पर यह तभी था जब कोई उस पर यह साबित करने वाला नहीं था कि कैसे हर लिहाज से वह हीन और छोटा।”, कथन है।- जुनेजा ने सावित्री से
- ” और जानकर ही कहता हूं कि तुमने इस तरह शिकंजे में कस रखा है उसे कि वह अब अपने दो पैरों पर चल सकने लायक भी नहीं रहा।”, कथन है।- जुनेजा का
- क्योंकि तुम्हारे लिए जीने का मतलब रहा है कितना-कुछ एक साथ होकर, कितना-कुछ एक साथ पाकर और कितना-कुछ एक साथ ओढ़कर जीना। वह उतना कुछ कभी तुम्हें किसी एक जगह न मिल पाता।, कथन है।- जुनेजा का
- देखा है कि जिस मुट्ठी में तुम कितना कुछ एक साथ भर लेना चाहती थी, उसमें जो था वह भी धीरे-धीरे बाहर फिसलता गया है कि तुम्हारे मन में लगातार एक डर समाता गया जिसके मारे कभी तुम घर का दामन थामती रही हो, कभी बाहर का और कि वह डर एक दहशत में बदल गया।-, कथन है।- जुनेजा का
आधे-अधूरे नाटक से संबंधित प्रश्नोत्तर
उत्तर - मोहन राकेश ने 'आधे-अधूरे' नाटक में महानगरों में रहने वाले मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों एवं विडम्बनाओं को दिखाया है।
प्रश्न 2. आधे अधूरे नाटक में लगातार सिगरेट पीते रहने वाले पत्र का नाम क्या है?
उत्तर - आधे अधूरे नाटक में लगातार सिगरेट पीते रहने वाले पात्र का नाम सिंघानिया है।
प्रश्न 3. मोहन राकेश का पहला नाटक कौन सा है?
उत्तर - मोहन राकेश का पहला आधुनिक हिंदी नाटक आषाढ़ का एक दिन है, जो उन्होंने 1958 ई. में लिखा था।
Aadhe Adhure Natak MCQ
प्रश्न 01. आधे अधूरे नाटक का पहला मंचन कहां हुआ?
- दिल्ली
- मुम्बई
- इलाहाबाद
- बनारस
उत्तर : 1. दिल्ली
प्रश्न 02. छोटी लड़की किस पत्रिका को छुप छुप कर पढ़ना चाहती थी।
- मेरी सहेली
- इंद्रसभा
- कैसानोवा
- रंगीली दुनिया
उत्तर : 3. कैसानोवा
प्रश्न 03. नाटक में प्रयुक्त मिस बैनर्जी कौन है।
- छोटी लड़की की शिक्षिका
- अशोक की महिला मित्र
- सिंघानिया की पहचान वाली
- बड़ी लड़की की सहेली
उत्तर : 1. छोटी लड़की की शिक्षिका
प्रश्न 04. आधे अधूरे नाटक की समस्या है?
- स्त्री पुरूष संबंध की त्रासदी
- परिवार विघटन की समस्या
- ब्यक्तित्व का अधूरापन
- उपरोक्त सभी
उत्तर : 4. उपरोक्त सभी
प्रश्न 05. आधे अधूरे की पात्र नहीं है।
- सुषमा
- सुरेखा
- वर्णा
- सारिका
उत्तर : 4. सारिका
प्रश्न 06. आधे अधूरे नाटक है
- काल्पनिक
- आदर्शवादी
- मनोरंजन प्रधान
- यथार्थवादी
उत्तर : 4. यथार्थवादी
प्रश्न 07. शिकायत किसी चीज नहीं, और हर चीज की है खास बातें कोई भी नही और सभी बातें खास है किनका कथन है
- सावित्री
- बिन्नी
- किन्नी
- सुरेखा
उत्तर : 2. बिन्नी
प्रश्न 08. आधे अधूरे का तुलनात्मक पुरुष पात्र है
- काले सुत वाला
- अशोक
- मनोज
- महेन्द्रनाथ
उत्तर : 4. महेन्द्रनाथ
प्रश्न 09. नाटक में विद्रोह स्वभाव किनका है
- किन्नी
- सावित्री
- अशोक
- बिन्नी
उत्तर : 1. किन्नी
प्रश्न 10. आधे अधूरे नाटक आज के इंसान के जिंदगी को आज के मुहावरे में पेश करता है।
- कन्हैयालाल नंदन
- नेमीचंद जैन
- कमलेश्वर
- डॉ नगेन्द्र
उत्तर : 2. नेमीचंद जैन