रामभक्ति शाखा: हिंदी सहित्य में जिन कवियों ने विष्णु के राम अवतार की उपासना को अपना लक्ष्य बनाकर काव्य रचना की उन्हें 'रामाश्रयी शाखा' या 'राम काव्य धारा' का नाम दिया गया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उत्तर भारत में राम भक्ति संप्रदाय की विधिवत शुरुआत रामानंद से मानी है। तथा रामचंद्र शुक्ल ने रामानंद का समय 1450 से 1525 ई. तक माना है। इस राभक्ति शाखा के प्रमुख राम भक्त कवि हैं— रामानंद, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, ईश्वर दास, तुलसी दास, नरहरिदास आदि।
रामभक्ति शाखा का महत्व
रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास ने 'रामचरित मानस' में वर्णित मर्यादा-पुरुषोत्तम राम का बखान कर घर-घर में पहुंचा दिया। तुलसीदास हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। समन्वयवादी तुलसीदास में लोकनायक के सब गुण मौजूद थे। आपकी पावन और मधुर वाणी ने जनता के तमाम स्तरों को राममय कर दिया। जन-समाज के उत्थान में आपने सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस शाखा में अन्य कोई कवि तुलसीदास के समान उल्लेखनीय नहीं है तथापि अग्रदास, नाभादास तथा प्राणचंद चौहान भी इस श्रेणी में आते हैं।
रामभक्ति शाखा की प्रवृत्तियाँ
काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं :-
राम का स्वरूप
रामानुजाचार्य के शिष्य श्री रामानंद के अनुयायी सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ के पुत्र भगवान राम के उपासक हैं।
भक्ति का स्वरूप
इनकी भक्ति का स्वरूप सेवक और सेव्य भाव का है। वे दास्य भाव से राम की आराधना करते हैं। वे स्वयं को तुच्छ तथा भगवान को महान बतलाते हैं।
लोक-मंगल की भावना
रामभक्ति साहित्य में राम के जन-रक्षक के रूप में देखा गया है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम तथा आदर्शों के संस्थापक हैं।
काव्य शैलियाँ
रामकाव्य धारा में काव्य की प्राय: सभी शैलियाँ का प्रयोग हुआ हैं। तुलसीदास ने भी अपने युग की प्राय: सभी काव्य-शैलियों को अपनाया है।
- वीरगाथाकाल की छप्पय पद्धति, विद्यापति व सूर की गीतिपद्धति, गंग आदि भाट कवियों की कवित्त-सवैया पद्धति, जायसी की दोहा पद्धति, सभी का सफलतापूर्वक प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है।
- रस : रामकाव्य में नव रसों का प्रयोग है। मुख्य रस यद्यपि शांत रस ही रहा।
- भाषा : रामकाव्य में मुख्यतः अवधी भाषा प्रयोग हुई है। किंतु ब्रजभाषा कही कही ब्रज भाषा भी देखने को मिलती है। रामचरितमानस की अवधी प्रेमकाव्य की अवधी भाषा की अपेक्षा अधिक साहित्यिक है।
- छंद : रामकाव्य में मुख्यतः दोहा-चौपाई देखने को मिलती है।
- इसके इसके साथ ही छप्पय, कुण्डलिया, कवित्त , सोरठा , तोमर ,त्रिभंगी आदि छंदों का भी प्रयोग हुआ है।
- अलंकार : इस माल में अलंकार का भी सहज और स्वाभाविक प्रयोग मिलता है। उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा का प्रयोग मानस में अधिक है।
रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि का परिचय
गोस्वामी तुलसीदास
केशवदास
सेनापति
ईश्वरदास
राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
कवि
रचनाऍं
तुलसीदास
दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण, गीतावली, विनय पत्रिका, पार्वती मंगल, राम लला नहछू, वैराग्य-संदीपनी, बरवै रामायण, जानकी मंगल, हनुमान बाहुक, रामाज्ञा प्रश्न, रामचरितमानस
विष्णुदास
रुक्मिणी मंगल, स्नेह लीला, रामायण कथा
केशवदास
रामचंद्रिका, रसिक प्रिया
ईश्वरदास
भरत मिलाप, अंगदपैज
नाभादास
रामाष्टयाम, भक्तमाल, रामचरित संग्रह
अग्रदास
अष्टयाम, रामध्यान मंजरी, हितोपदेश या उपाख्यान बावनी
प्राणचंद चौहान
रामायण महानाटक
ह्रदयराम
हनुमन्नाटक, सुदामा चरित, रुक्मिणी मंगल
सेनापति
कवित्त रत्नाकर
राम भक्ति शाखा और कृष्ण भक्ति शाखा में अंतर
कृष्ण-काव्यधारा | राम- काव्यधारा |
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1. कृष्ण-काव्य विष्णु स्वामी के शुद्धाद्वैत की देन है, जिसका विस्तार बल्लभाचार्य ने किया। | 1. राम-काव्य के प्रवर्तक रामानुजाचार्य थे किन्तु इसके विस्तार का श्रेय रामानन्द को दिया जाता है। |
2. इस धारा में सख्य भाव एवं प्रेम को प्रमुखता दी गयी। | 2. इसमें स्वामी और सेवक के सम्बन्ध पर बल देकर दास्य - भाव को प्रमुखता दी गयी । |
3. इस काव्य का महत्व सिर्फ लोकरंजक के रूप में है। | 3. इसमें भगवान को लोकरंजक तथा लोक रक्षक दोनों ही रूपों में स्वीकार किया गया। |
4. इसमें ईश्वर की प्राप्ति (सिद्धावस्था) को मान्यता दी गयी है। | 4. इसमें ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न साधनों को मान्यता प्रदान की गयी। |
5. कृष्ण काव्यधारा अवर्णों को स्थान प्रदान करती है | सरस और प्रवाहपूर्ण शैली में ज्ञान- भक्तिपरक काव्य-रचना |
6. ब्रजभाषा की प्रधानता हैं। | 6. राम भक्ति सवर्णो को स्थान प्रदान करती है अवधी भाषा की प्रधानता हैं। |
7. इस काव्य धारा में सक्तक ही उपलब्ध हैं। | 7. इसमें प्रबन्ध और मक्तक दोनों काव्य उपलब्ध हैं। |
Bhakti kaal FAQ :-
यह भी देखें:-