निर्गुण भक्ति के प्रमुख कवि एवं विशेषताऍं

हिंदी साहित्‍य में निर्गुण काव्य धारा शब्द की बात करें तो ये शब्द संस्कृत भाषा का से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है - विशिष्टता रहित अथवा गुण रहित। जैसे निर्गुण भक्ति का अर्थ है - ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना करना। इसमें निर्गुण भक्ति ईश्वर की पूजा के अमूर्त रूप को संदर्भित करती है भक्ति की इस शाखा के अनुयायी का मानना था कि ईश्वर निराकार और दिव्य है।


निर्गुण भक्ति के प्रमुख कवि एवं विशेषताऍं

ब्रह्म के दो स्वरूप हैं-निर्गुण व सगुण। निर्गुण भक्ति निराकार ईश्वर की भक्ति है। निर्गुण भक्ति में ईश्वर को घट-घट का स्वामी माना गया है। इस भक्ति में गुरु का एक विशेष महत्त्व है। यह भक्ति मानव को एक ऐसे विश्वव्यापी धर्म से जोड़ती हैजहाँ जाति-पाँतिछुआछूतवर्ण भेद नहीं होता। इस भक्ति में सहज साधना की महत्ता है।

निर्गुण भक्ति का मार्ग ज्ञानमार्गी है। रहस्यवाद भी निर्गुण ब्रह्म पर ही आश्रित है। रहस्यवाद माधुर्य भाव की निर्गुण भक्ति ही है। यह भक्ति मूर्तिपूजाकर्मकाण्ड इत्यादि बाह्याडम्बरों का विरोध करके ईश्वर के निराकार रूप की भक्ति करउससे एकाकार होने व ज्ञान एवं प्रेम के द्वारा उस अलौकिक ईश्वर को प्राप्त करने पर बल देती है।

निर्गुण भकि में प्रेम का विशेष स्थान है। प्रेम के बिना भक्ति सम्भव ही नहीं हो सकती। 
निर्गुण भक्ति का आदि स्रोत श्वेताश्वतर उपनिषद् है।

हिन्दी में निर्गुण भक्ति की अभिव्यक्ति सबसे पहले महाराष्ट्र के सन्त नामदेव (13वीं शती) की रचनाओं में मिलती है। इन्होंने ऐसे भक्ति मार्ग की ओर संकेत किया थाजो हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के लिए ग्रहण करने योग्य था।
नामदेव को 'बिठोवा का भक्त', भी माना जाता है।


निर्गुण काव्य की विशेषता 

निर्गुण काव्‍य धारा की प्रमुख विशेषताऍं निम्‍नलिखित है:- 

    1. गुरू का महत्त्व।
    2. ईश्वर में विश्वास।
    3. रूढ़ियों का विरोध।
    4. विषय-वासनाओं के प्रति विरक्ति।
    5. ब्रह्मचारियों का विरोध।
    6. मूर्तिपूजा का विरोध।
    7. विश्व मानवतावाद की स्थापना।
    8. बाह्य आडम्बरों का विरोध।
    9. अवतारवाद का विरोध।
    10. निराकार ईश्वर की उपासना।
    11. आत्मा तथा परमात्मा के विरह मिलन का चित्रण।
    12. रहस्यवाद की भावना।
    13. निजी धार्मिक सिद्धांतों का आभाव।
    14. सामाजिक कुरीतियों का विरोध।
    15. ब्रज और सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग।
    16. प्रतीकों का प्रयोग।
    17. शिक्षा का आभाव।


निर्गुण भक्ति काव्य के प्रमुख कवि 

निर्गुण भक्ति काव्‍य धारा के प्रमुख कवि निम्‍न है:- 

  • कबीरदास
  • तुलसीदास
  • सूरदास
  • परमानंद दास
  • कुंभनदास
  • नंददास
  • कृष्णदास
  • चतुर्भुजदास
  • हितहरिवंश
  • गदाधर भट्ट
  • चैतन्य महाप्रभु
  • रहीमदास
  • छीतस्वामी
  • गोविन्दस्वामी
  • मीराबाई
  • व्यास जी
  • रसखान
  • स्वामी हरिदास
  • सूरदास मदनमोहन
  • श्रीभट्ट
  • ध्रुवदास


निर्गुण भक्ति की शाखाएँ

निर्गुण भक्ति की शाखाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है :-

1. सन्त काव्यधारा/ज्ञानमार्गी धारा

2. सूफी काव्यधारा/प्रेममार्गी धारा