निर्गुण प्रेममार्गी (सूफ़ी ) काव्यधारा: भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा की दूसरी शाखा को सूफी काव्यधारा कहा जाता है। सूफी काव्य अन्य नाम से भी जाना जाता हैं- प्रेममार्गी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा आदि।
सूफी काव्यधारा/प्रेममार्गी धारा
‘सूफी' शब्द का निर्माण सूफ से बना है, जिसका अर्थ होता है 'सफेद ऊन का"। सूफी लोग वैभव शून्य व सरल जीवन यापन करने के कारण मोटे ऊन के कपड़े पहनते थे, इसी कारण इल्हें सूफी कहा जाता था। दूसरा मत यह है कि सूफी शब्द का सम्बन्ध यूनानी शब्द सोफोस (Sophos) से है जिसका अर्थ होता है बुद्धिमान या ज्ञानी'। अंग्रेजी के फिलॉसोफी शब्द में भी यही शब्द है।
इस प्रकार सूफी शब्द का अर्थ होता है 'ज्ञानी'। इस काल के कवि ईश्वर और जीव का सम्बन्ध भय का नहीं वरन् प्रेम का मानते थे। उनका झुकाव सर्वेश्वरवाद की ओर था। वे संगीत के प्रेमी थे। इन सब बातों के कारण ही वे कट्टर मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दू धर्म के अधिक निकट थे। भारत में सूफी सम्प्रदाय का आरम्भ सिन्ध से हुआ है।
निर्गुण प्रेममार्गी (सूफ़ी ) काव्यधारा की विशेषताएं
- सांस्कृतिक समन्वय का सूत्रपात।
- जीवन-मूल्य के रूप में प्रेम की प्राधनता।
- लोक कथाओं का प्रतीकात्मक रूपान्तरण।
- निर्गुण ईश्वर में विश्वास।
- गुरू (पीर) की महत्ता का प्रतिपादन।
- प्रकृति का रागात्मक चित्रण।
- विरह का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन।
- शैतान की अवधारणा।
- रहस्यवादी चेतना।
- मसनवी शैली।
- श्रृंगार रस की प्रधानता
निर्गुण प्रेममार्गी (सूफ़ी ) काव्यधारा के प्रमुख कवि
कुतबन
कुतबन हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि थे, जिन्होंने सन 1503 ई. में 'मृगावती' नामक प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की थी। 'मृगावती' किसी पूर्व प्रचलित कथा को आधार मानकर लिखा गया है। इसमें दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल आदि अनेक छंदों का प्रयोग किया गया है।
अपनी रचना 'मृगावती' में कुतबन ने चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार तथा कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन किया है। कुतबन ने अपने काव्य रचना में किसी भी प्रकार का वैयक्तिक परिचय नहीं दिया है। उससे इतना ही ज्ञात होता है कि हुसेनशाह शाहे-वक्त और सुहरावर्दी सम्प्रदाय के शेख़ बुढ़न उनके गुरु थे।ऐसा भी माना जाता है कि हुसेनशाह से उनका तात्पर्य जौनपुर के शर्की सुल्तान से है।
मंझन
मंझन हिंदी सूफी प्रेमाख्यान परंपरा के कवि थे। मंझन के जीवनवृत्त के विषय में उसकी कृति "मधुमालती" से ही ज्ञात होता है। मंझन ने इस कृति में शहएवक्त सलीम शाह सूर, अपने गुरू शेख मुहम्मद गौस एवं खिज्र खाँ तथा अपने निवासस्थान व "मधुमालती" का उल्लेख किया है।
मंझन ने "मधुमालती" की रचना अपने पिता शेरशाह सूर की मृत्यु (952 हिजरी सन् 1545 ई0) के उपरांत ही प्रारंभ किया था। सूफी संत शेख मुहम्मद गौस उनके गुरू थे। जिनका प्रभाव उस समय बाबर, हुमायूँ और अकबर तक पर भी था। इस कृति में मंझन ने अपने गुरू की बड़ी निष्ठा और बड़े विस्तार के साथ बड़ाई की है। मंझन जाति के मुसलमान थे।
मंझन ने अपनी प्रसिद्ध रचना "मधुमालती" को समय 952 हिजरी (सन् 1545 ई0) मे लिखा था। इस रचना में कनकगिरि नगर के राजा सुरजभान के पुत्र मनोहर तथा महारस नगर नरेश विक्रमराय की कन्या मधुमालती की प्रेमकहानी का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि "जो सभ रस महँ राउ रस ताकर करौं बखान "कविस्वीकारोक्ति के अनुसार जो सभी रसों का राजा (शृंगार रस) है उसी का वर्णन किया गया है, जिसकी प्रेम, ज्ञान और योग है।
मलिक मुहम्मद जायसी
जायसी जी (1492-1548) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के एक प्रमुख कवि थे। साथ ही वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल एवं उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश से संबंध रखते थे। मिस्र में सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहा जाता हैं। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश के कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा को मरवाने के लिए अनेक मलिकों को नियुक्त किया था जिस कारण इस काल में मलिक नाम काफी प्रचलित हो गया था।
मलिक मूलतः अरबी भाषा का शब्द है। अरबी में जिसका अर्थ स्वामी, राजा, सरदार आदि होते हैं। मलिक शब्द का फारसी में अर्थ होता है - "अमीर और बड़ा व्यापारी'। जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था। मलिक नाम उन्हें अपने पूर्वजों से ही मिला "सरनामा' है। जिससे ज्ञात होता है कि पूर्वज अरब थे। मलिक के पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था तथा माँ मनिकपुर के शेख अलहदाद की पुत्री थी।
जायसी के गुरू का नाम मुबारक शाह बोडले था इन्होने लगभग 24 पुस्तकों की रचना की। परन्तु वर्तमान में इनकी महज पांच रचनाएं पद्मावत, अखरावट, कहरनामा, चित्ररेखा आखिरी कलाम, आदि उपलब्ध हैं। इन सब में सबसे अधिक लोकप्रिय रचना पद्मावत है जिन्होंने जायसी को अमर कर दिया था। जायसी ने इसको बाबर के काल में 1540-41 में लिखा था।
नन्ददास
नन्ददास (वि ० सं ० १५९० - ) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के ब्रजभाषा के एक सन्त कवि थे। वे वल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्ग) के आठ कवियों (अष्टछाप कवि) में से एक प्रमुख कवि थे तथा ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे।
नन्ददास का जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में वि ० सं ० 1420 में अन्तर्वेदी रामपुर (वर्तमान श्यामपुर) में हुआ जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में है। ये संस्कृत व बृजभाषा के अच्छे विद्वान थे। वैषणवों की वार्ता से पता चलता है कि ये रसिक किन्तु दृढ़ संकल्प से युक्त थे।
चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार नन्ददास, गोस्वामी तुलसीदास के छोटे भाई थे। विद्वानों के अनुसार वार्ताएं बहुत बाद में लिखी गई हैं। अतः इनके आधार पर सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो सकता। पर इतना निश्चित है कि जिस समय वार्ताएं लिखी गई होंगी उस समय यह जनश्रुति रही होगी कि नन्ददास तुलसीदास भाई हैं, चाहे चचेरे हों या गुरुभाई बहुत प्रचलित रही होगी।
प्रेममार्गी शाखा के कवि और उनकी रचनाएँ
कवि | रचनाऍं |
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मुल्लादाऊद | चन्दायन |
कुतुबन | मृगावती |
मंझन | मधुमालती |
जायसी | पद्मावत, अखरापट, आखरी कलम, चित्र रेखा, कहरनामा, मसलनामा |
असाइत | हंसावली |
दामोदर कवि | लखनसेन पद्मावती कथा' |
ईष्वरदास | सत्यवती कथा |
नन्ददास | रूपमंजरी |