कृष्णभक्ति शाखा
- भक्ति काल में कृष्णभक्ति शाखा का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार हुआ है।
- इनमें वल्लभाचार्य के पुष्टि-संप्रदाय के अंतर्गत अष्टछाप के महान कवि जैसे- सूरदास, रसखान, कुम्भनदास हुए हैं।
- वात्सल्य और श्रृंगार रस के सर्वोत्तम भक्त-कवि सूरदास के पदों का परवर्ती हिंदी साहित्य पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है।
- इस शाखा के अधिकांश कवियों ने प्रायः मुक्तक काव्य ही लिखा है।
- भगवान श्रीकृष्ण का बाल तथा किशोर रूप ही इन कवियों को आकर्षित कर पाया है इसलिए इनके काव्यों में श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य की अपेक्षा माधुर्य का ही प्राधान्य रहा है।
- प्रायः सब कवि गायक थे इसलिए कविता तथा संगीत का अद्भुत सुंदर समन्वय इन कवियों की रचनाओं में मिलता है।
- नर-नारी की साधारण प्रेम-लीलाओं को राधा-कृष्ण की अलौकिक प्रेमलीला को जोड़कर उन्होंने जन-मानस को रसाप्लावित कर दिया।
कृष्ण काव्य धारा की विशेषताएँ
कृष्ण काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन
कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में राधा-कृष्ण की लीलाओं (लीलागान दृष्टि) का वर्णन विशेष रूप से किया है।
रीति तत्त्व का समावेश
कृष्णभक्ति साहित्य आनन्द और उल्लास का साहित्य है। कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में श्रृंगार वर्णन के साथ-साथ रीति तत्त्व का भी समावेश किया है। इन कवियों ने अपने काव्य में अलंकार-निरूपण एवं नायिका भेद का चित्रण किया है।
प्रेममयी भक्ति
प्रेममयी भक्ति कृष्ण भक्त कवियों प्रायः देखने को मिलती है कृष्ण की प्रेम-लीला के करण इसका होना स्वाभाविक था।
जीवन के प्रति आवश्यक राग-रंग
कृष्ण काव्यधारा सामन्ती जड़ताओं को न अपनाकर जीवन के प्रति आवश्यक राग व रंग को स्वीकार किया है।
प्रकृति चित्रण
कृष्ण काव्य में श्रीकृष्ण व उनकी लीला स्थली ब्रजभूमि अनन्त सौन्दर्य के लिए विख्यात रही है। कृष्ण भक्त कवियों ने अपने काव्य में जहाँ-जहाँ राधा-कृष्ण के सौन्दर्य का चित्रण किया है, वहाँ उनकी ब्रजभूमि का सौन्दर्य निरूपण भी उन्होंने किया है।
अलंकार और छन्द योजना
सूरदास, मीरा, नन्ददास और रसखान आदि कृष्ण भक्त कवियों के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विभावना, असंगति आदि समस्त अलंकारों की सुषमा देखने को मिलती है।
रस योजना
कृष्णभक्ति काव्यधारा में वात्सल्य व शृंगार रस का चित्रण मुख्य रूप से हुआ है। रामचन्द्र शुक्ल का कहना है कि सूरदास जी को वात्सल्य रस का एकछत्र सम्राट है।
भाषा-शैली
कृष्णभक्ति काव्य की भाषा ब्रज है।
कृष्ण काव्य धारा के कवि
सूरदास
सूरदास हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि थे। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक तो थे हि साथ ही वह ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि थे। सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य माना जाता हैं। सूरदास जी जन्म से अंधे थे अथवा नहीं, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। सूरदास जी के प्रमुख ग्रन्थों में सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती तथा ब्याहलो का नाम आता है।
मीराबाई
मीराबाई (1498 ई - 1547 ई.) हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के में भगवान श्रीकृष्ण की एक महान भक्त थी जिन्हें “राजस्थान की राधा” के नाम से भी जाना जाता है। मीरा एक गायिका, कवि के साथ एक संत भी थी। उसका जन्म मध्यकालीन राजपूताना (वर्तमान राजस्थान में) के मेड़ता शहर के कुड़की ग्राम नामक स्थान पर हुआ था। मीराबाई को बचपनें से ही श्री कृष्ण के प्रति मोह हो गया था।
भक्ति के इसी मोह के कारण मीरा भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में जुट गई और आजीवन भक्ति में ही लीन रही। आज मीराबाई को श्रीकृष्ण के महान भक्तों में से एक गिना जाता है।
रसखान
हिंदी साहितय के महाकवि रसखान कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। इनका जन्म पिहानी, भारत में हुआ था। हिन्दी साहित्य के कृष्ण भक्त एवं रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। रसखान विट्ठलनाथ के शिष्य थे तथा वल्लभ संप्रदाय के सदस्य भी थे। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति एवं शृंगार रस दोनों प्रधानता देखनेे को मिलती हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं|
गुरु रविदास
गुरु रविदास अथवा रैदास मध्यकाल के हिंदी साहित्य भक्तिकाल आंदोलन के एक भारतीय रहस्यवादी कवि व संत थे। जिन्होंने जात-पात के अन्त विरोध में कार्य किया। तथा उन्होंने रविदासिया धर्म की स्थापना की। इन्हें सतगुरु अथवा जगतगुरु की उपाधि दी जाती है। इनके रचे गये कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।
प्रमुख कृष्ण भक्त कवि एवं कृतियाँ
कवि
रचनाऍं
सूरदास
सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी
परममानंद दास
परमानंद सागर
कृष्ण दास
जुगलमान चरित्र, भ्रमरगीत, प्रेमतत्व निरूपण
कुंभन दास
फुटकल पद
छीत स्वामी
फुटकल पद
गोविंद स्वामी
फुटकल पद
चतुर्भुज दास
द्वादशयश, भक्ति प्रताप, हितजू को मंगल
नंददास
रासपंचाध्यायी, सिद्धांत पंचाध्यायी, अनेकार्थ मंजरी, मानमंजरी, रूपमंजरी, विरहमंजरी, भँवरगीत, गोवर्धनलीला, श्यामसगाई, पदावली
श्री भट्ट
युगल शतक
रसखान
सुजान रसखान, प्रेम वाटिका, दान लीला, अष्टयाम
हित हरिवंश
हित चौरासी
स्वामी हरिदास
सिद्धान्त के पद, केलिमाल
ध्रुवदास
भक्त नामावली, रसलावनी
मीराबाई
नरसी जी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद,राग सोरट के पद