हिंदी साहित्य का भारतेन्दु युग: भारतेन्दु युग का उदय हिन्दी कविता के लिए नवीन जागरण के सन्देशवाहक युग के रूप में हुआ। इसे पुनर्जागरण काल भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' का प्रकाशन 1903 ई. में संभाला था। सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई. से शुरू हुआ। अत: 1868 से 1900 ई. तक की अवधि को भारतेन्दु युग कहना समीचीन है। भारतेन्दु जी का युग आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार है। इसे संक्रान्ति का युग भी कह सकते हैं।
भारतेंदु युग का नामकरण
हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल के प्रथम चरण को "भारतेन्दु युग" माना गया है और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र सम्पादक, संगठनकर्ता, साहित्यकारों के नेता और समाज सुधारवादी विचारक थे। इन सब के चलते इस युग को भारतेन्दु-युग की संज्ञा दी गई है।
इस काल में हिन्दी के प्रचार उदन्त मार्तण्ड, कवि वचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन आदि पत्र-पत्रिकाओं का विशेष योगदान रहा है। इस युग में हिन्दी गद्य की सर्वांगीण विकास हुआ है और उसमें उपन्यास, कहानी, आलोचना, जीवनी, नाटक, निबन्ध, आदि विधाओं में अनूदित तथा मौलिक रचनाएं लिखी गयीं।
विद्वानों के अनुसार भारतेंदु युग की व्याप्ति का समय
मिश्रबन्धु 1926- 1945 वि तक,
डॉ. रामकुमार वर्मा 1927- 1957 वि तक,
डॉ. केसरीनारायण शुक्ल 1922- 1957 वि तक,
डॉ. रामविलास शर्मा 1925- 1957 वि तक
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का योगदान
भारतेन्दु मण्डल
भारतेंदु युग के प्रमुख लेखक
क्या आप जानना चाहेंगे :-
भारतेन्दु युग की पत्रिका
भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं/ प्रवृत्तियां
राष्ट्रीयता की भावना
भारतेन्दुयुगीन कवियों ने भारतीय जनमानस में देशप्रेम की अलख जगाई। क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर वे सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता और अखण्डता को मजबूत कर राष्टीयता की भावना को मजबूत किया।
समाज की दुर्दशा का चित्रण तथा सामाजिक चेतना
कवियों ने सामाजिक जीवन की उपेक्षा न कर जनता की समस्याओं के निरूपण की ओर पहली बार व्यापक रूप से ध्यान दिया। भारतेन्दु युग में नारी-शिक्षा, विधवाओं की दुर्दशा, अस्पृश्यता आदि को लेकर जो सहानुभूतिपूर्ण कविताएँ लिखी गई, उनके प्रतिपादा की नवीनता ने सहृदय समुदाय को विशेष रूप से आकृष्ट किया। मध्यवर्गीय सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण किया, तो दूसरी ओर रूढ़ियों का विरोध करते हुए विकास चेतना की आकांक्षाओं को भी अभिव्यक्ति दी।
प्रकृति चित्रण
भारतेन्दुयुगीन कवियों ने प्रकृति का स्वच्छन्द रूप में चित्रण किया है। वसन्त, वर्षा, शरद् आदि ऋतुओं का सुन्दर व मनोहारी चित्रण किया है। चाँदनी रात में गंगा, यमुना, सरस्वती का जीवन्त चित्रण किया है।
शृंगारिकता
भारतेन्दु युग में कवियों ने शृंगार का विशद् वर्णन किया है। राधा-कृष्ण की प्रेमलीलाओं का चित्रण इस युग के कवियों ने नायक-नायिका के रूप में किया है। भारतेन्दु जी की अनेक रचनाएँ; जैसे-प्रेम सरोवर, प्रेमाश्रु, प्रेम तरंग, प्रेम माधुरी आदि में श्रृंगार का विशद् वर्णन हुआ है
हास्य एवं व्यंग्य
भारतेन्दुयुगीन कवियों ने हास्य-व्यंग्य रचनाएँ भी की, परन्तु उनका हास्य उद्देश्यपूर्ण है। इस काल के कवियों ने तत्कालीन अंग्रेजी शासन, अन्धविश्वास, रूढ़ियों आदि पर प्रहार किया है। नए जमाने की मुकरी में उन्होंने अंग्रेज, पुलिस, खिताब आदि पर व्यग्य किए हैं।
भाषा व शैली
भारतेन्दु काल में मुख्यत: मुक्तक और गीति शैली का प्रयोग हुआ है। ब्रज भाषा मुख्य रही, इनके अतिरिक्त खड़ी बोली, उर्दू, बंगाली, गुजराती में काव्य रचना हुई। इस युग के कवियों ने दोहा, चौपाई, कुण्डलिया, हरिगीतिका, कवित्त जैसे छन्दों में काव्य की रचना की।
भारतेन्दुयुगीन कवि व उनकी कृतियाँ
भारतेन्दु युग में दो प्रकार के कवियों की श्रेणियाँ बनीं। एक भारतेन्दु मण्डल कवि तथा दूसरे अन्य कवि। भारतेन्दु मण्डल के कवियों में बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन', प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालमुकुन्द गुप्त अम्बिकादत्त व्यास और राधाकृष्ण दास प्रमुख हैं। दूसरे अन्य कवियों में स्वर चतुर्वेदी, गोविन्द गिल्लाभाई, दिवाकर भट्ट, रामकृष्ण वर्मा और दुर्गादत्न व्यार प्रमुख माने जाते हैं।
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और रचनाएँ
कवि | रचनाऍं |
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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | प्रेममालिका, प्रेम सरोवर, प्रेम माधुरी, वर्षा विनोद, प्रेम फुलवारी, मधु-मुकुल, विनय प्रेम पचासा |
बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' | ब्रजचन्द पंचक, जीर्ण जनपद, आनन्द अरुणोदय, लालित्य लहरी, हार्दिक हर्षोदर्श, अलौकिक लीला, वर्षा बिन्दु |
प्रतापनारायण मिश्र | प्रेम पुष्पावली, मन की लहर, शृंगार विलास, लोकोक्तिशतक, तृप्यन्ताम् |
जगमोहन सिंह | प्रेम सम्पत्तिलता, श्यामा सरोजनी, देवयानी, ऋतु संहार (अनूदित), मेघदूत (अनूदित) |
अम्बिकादत्त व्यास | सुरवि सतसई, हो हो होरी, बिहारी विहार, पावन पचासा |
नवनीत चतुर्वेदी | कुब्जा पच्चीसी |
राधाकृष्ण दास | भारत बारहमासा, देश दशा, रहीम के दोहों पर कुण्डलियों की |
गोविन्द गिल्लाभाई | शृंगार सरोजनी, पावन पयोनिधि, राधामुख षोडसी, षड्ऋतु, नीति विनोद |
दुर्गादत्त व्यास | अधमोद्धार शतक |
राधाचरण गोस्वामी | नवभक्तमाल |
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