हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल): तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ है। इस काल का प्रारंभ 1850 ईसवी से माना जाता है। यह रीतिकाल के बाद का काल है। इस काल को हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ ही गद्य, निबन्ध, नाटक-उपन्यास, कहानी, समालोचना, तुलनात्मक आलोचना, पत्रकारिता, साहित्य आदि सभी रूपों का समुचित विकास हुआ।
हिन्दी गद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास (भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य)
- हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली दोनों भाषाओं में हुआ।
- इसके विकास में कलकत्ता में 1800 ई. में स्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज की प्रमुख भूमिका रही।
- लल्लू लाल जी ने 'प्रेमसागर', सदल मिश्र ने नासिकेतोपाख्यान' सदासुख लाल ने 'सुखसागर' और इंशा अल्लाह खाँ ने ‘रानी केतकी की कहानी' की रचना की।
आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ
पद्य के साथ गद्य का विकास
हिंदी साहित्य के इस युग में पद्य के साथ गद्य का भी विकास हुआ है। मुख्य रूप से गद्य का आविर्भाव और बहुमुखी विकास इस युग की प्रमुख विशेषता है। इस विशेषता के कारण ही आधुनिक काल को आलोचकों ने गद्यकाल का नाम दिया है।
खड़ी बोली का साहित्य क्षेत्र में एकाधिकार
आधुनिक काल में गद्य के लिए खड़ी बोली को ही उपयुक्त भाषा माना गया तथा इस में ही अधिकांश काव्य रचनाएं की गई। धीरे-धीरे वर्तमान युग में यह खड़ीबोली हिन्दी राष्ट्रभाषा ही हो गई है।
राष्ट्रीय भावना का विकास
आधुनिक काल की तीसरी प्रमुख विशेषता राष्ट्रीय भावना रही है। इस समय भारत का गुलाम था तथा लोगों में राजनीतिक चेतना को जार्गीत करने के लिए काव्य का सहारा लिया गया। जिसके फलस्वरूप लोगों में राज-भक्ति, देश-भक्ति, राष्ट्रीय प्रेम-भाव, स्वतन्त्रता प्रेम, मानवता-प्रेम, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य की भी राष्ट्रीय भावना जागृति का सन्देश की भावना जार्गीत हुई।
सामाजिक क्षेत्र में नवयुग की चेतना
आधुनिक काल चौथी विशेषता साहित्य में नवयुग की चेतना के विकास है, जिसमें मानव का स्वरूप, सामाजिक अवस्था इत्यादि सामाहित होते हैं। इस युग में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। और साथ ही श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने भी नवयुग की चेतना को गति प्रदान की है।
विविधमुखी विकास
आधुनिक काल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग कह सकते हैं। यह काल बहुत विस्तृत होने के साथ विविधमुखी विकास की व्यंजना करता है। इस युग में नवीन साहित्य के साथ ही परम्परा वाला लोकसाहित्य भी नवयुग की भावनाओं से समन्वित हो रहा है।
आधुनिक काल के प्रमुख कवि
इस काल के प्रमुख कवि राजा लक्ष्मण सिंह, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, श्रीधर पाठक, रामचंद्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, गोपाल शरण सिंह, माखन लाल चतुर्वेदी, अनूप शर्मा, रामकुमार वर्मा, नाथूराम शर्मा शंकर, ला. भगवान दीन, रामनरेश त्रिपाठी, जयशंकर प्रसाद, श्याम नारायण पांडेय, दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
ब्रजभाषा गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ व उनके रचनाकार
रचनाएँ | रचनाकार |
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श्रृंगार रसमण्डन | गोसाईं विट्ठलनाथ |
अष्टयाम | नाभादास |
चौरासी वैष्णव की वार्ता | गोकुलनाथ |
दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता | गोकुलनाथ |
अगहन माहात्म्य | बैकुण्ठमणि शुक्ल |
वैशाख माहात्म्य | बैकुण्ठमणि शुक्ल |
बैताल पचीसी | सुरति मिश्र |
खड़ी बोली गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ व रचनाकार
रचनाएँ | रचनाकार |
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भाषायोग वाशिष्ठ | रामप्रसाद निरंजनी |
पद्मपुराण का भाषानुवाद | पं. दौलतराम |
मण्डोवर का वर्णन | पं. दौलतराम |
सुखसागर | सदासुखलाल |
नासिकेतोपाख्यान | सदल मिश्र |
रानी केतकी की कहानी | मुंशी इंशा अल्ला खाँ |
सांस्कृतिक जागरण सम्बन्धी संस्थाएँ
संस्था | संस्थापक |
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ब्रह्म समाज (1828 ई.) | राजा राममोहन राय |
प्रार्थना समाज (1867 ई.) | केशवचन्द्र सेन |
रामकृष्ण मिशन (1897 ई.) | स्वामी विवेकानन्द |
आर्य समाज (1875 ई.) | दयानन्द सरस्वती |
थियोसोफिकल सोसायटी (1875 ई.) | मैडम ब्लावत्सकी |
आधुनिक हिंदी साहित्य का काल विभाजन
आधुनिक हिंदी साहित्य को निन्म छ: भागों में विभाजन किया गया हैं :-
- भारतेन्दु युग ( सन् 1850 से 1900)
- द्विवेदी युग (सन् 1900 से 1918)
- छायावादी युग ( सन् 1918 से 1936)
- प्रगतिवादी युग (सन् 1936 से 1943 )
- प्रयोगवादी युग ( 1943 से 1954 )
- नई कविता ( 1954 से अब तक)
यह भी देखें:-